महावीर जयंती पर विशेष लेख। डॉ.हनुमान प्रसाद चौबे

 

                  डॉ हनुमान प्रसाद चौबे

जिस समय देश में धन था,परंतु कुछ लोगों के पास था । अधिकांश लोग निर्धन थे और दास थे।स्त्रियों और शूद्रो का समाज में कोई स्थान नहीं था ।धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के प्रचलित मत-मतांतरों में जन समाज बुरी तरह जकड़ा हुआ था । लोग चमत्कारों को महत्त्व देते थे ।अधिक चमत्कारी अधिक बड़ा साधु - संन्यासी माना जाता था ।यज्ञ दीर्घकालीन , हिंसात्मक और अपव्ययी होते थे।ऐसे समय में दो महान धर्मो का उदय हुआ -

1. जैन धर्म और 2. बौद्ध धर्म ।

जैन धर्म के प्रवर्तक हुए - महावीर स्वामी ।

बिहार प्रांत के वैशाली नरेश सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला ने एक रात अद्भुत स्वप्न देखा ।राजा ने विद्वानों को बुलाकर स्वप्न - फल जानना चाहा।एक विद्वान ने कहा - महाराज ! यह स्वप्न असाधारण है। महारानी एक ऐसे पुत्र रत्न को जन्म देगी जो बड़ा होकर चक्रवर्ती होगा ।वह धर्म का प्रवर्तन करेगा। वह समय आया और ५९९ई.पू.बसंत ऋतु चैत्र मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि दिन सोमवार को महारानी त्रिशला ने वर्धमान नामक एक पुत्र रत्न को जन्म दिया ।

राजकुमार वर्धमान जितने ज्ञानी थे उतने ही शक्तिशाली भी थे ।वे बचपन से ही चिंतनशील थे।संसार के दुःख और नश्वरता के प्रति सजग थे ।आठ वर्ष की साधारण अवस्था में ही उन्होंने संकल्प लिया - अहिंसा , सत्य, ब्रह्मचर्य, और संयम । राजकुमार वर्धमान ने एक मतवाले हाथी को अपने वश में कर लिया जिससे उनका नाम महावीर पड़ गया।कलिंग नरेश जित शत्रु की राजकुमारी परम सुंदरी यशोदा का विवाह - प्रस्ताव महावीर ने ठुकरा दिया।

वर्धमान महावीर को 30 वें वर्ष में मन में वैराग्य का उदय हुआ ।वे गृह का त्याग कर दिए।बारह वर्षों तक वे जंगलों में रहकर तप करते रहे ।जंगल का प्रत्येक वृक्ष उनका निवास स्थान था।अंत में ऋजुबाकुला नदी के किनारे उनको ज्ञान मिला।जीवन के सारे रहस्यों को जान लिया ।ज्ञान प्राप्त करने के बाद सबसे पहले मगध  राज्य में  आपने  अहिंसा का उपदेश दिया ।महावीर स्वामी ने विभिन्न स्थानों का  भ्रमण कर अपने जैन धर्म का प्रचार किया और अंत में ५२७ ई.पू.कार्तिक कृष्ण पक्ष १४ तिथि को प्रात: पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया।

महावीर स्वामी ने पंच महाव्रत का उपदेश दिया - 

1.अहिंसा 2. ब्रह्मचर्य 3. अपरिग्रह 4.सत्य और 5. अस्तेय।

उन्होंने कठोर तप और साधना करके मानव जाति को निर्वाण तक पहुंचाने के लिए सुदृढ़ सोपानों का निर्माण किया ।

सूर्यवंशी अयोध्या नरेश ऋषभ देव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर और महावीर स्वामी २४ वें तीर्थंकर माने जाते है।

महावीर स्वामी व्यक्ति नहीं , सत्य है।उनके प्रति निष्ठा रखना व्यक्ति निष्ठा नहीं सत्य निष्ठा है। जैन धर्म आज के हिंसात्मक , अशांत, आतंक युक्त और आक्रोश युक्त युग में और भी प्रासंगिक है।

1 Comments

  1. हनुमान प्रसाद चौबे जी ने महावीर स्वामी पर अच्छा प्रकाश डाला है।

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