*विवेक शक्ति केवल मनुष्य योनि में ही विकसित हो सकती है, अन्य किसी भी योनि में नहीं।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

अक्सर साधारण मनुष्य बुद्धि और विवेक में अंतर नहीं देखता। देखिये, संसार को जानने के लिए  बुद्धि की आवश्यकता होती है। जिसके लिए हम अपने छोटे बच्चों को पहले नर्सरी स्कूल, प्राईमरी स्कूल, हाई स्कूल और कॉलेज में पढ़ने-लिखने के लिए भेजते हैं। लेकिन परमात्मा को जानने समझने के लिए विवेक की जरूरत होती है, जिसके लिए अक्सर माता-पिता कुछ नहीं करते। जिसके परिणाम हम-आप देख ही रहे हैं। आए दिन खून, अपहरण, बलात्कार आदि का समाचार देखने सुनने को मिलता रहता है। मानवता तो बिल्कुल खत्म ही हो गया है। देखिये, यह विवेक-शक्ति किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु के सान्निध्य में जाकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करने से ही जागृत होना आरंभ होती है।  दूसरी बात, यह विवेक-शक्ति केवल मनुष्य योनि में ही विकसित हो सकती है, अन्य किसी भी योनि में नहीं। इसलिए हमें अपने जीवन में सत्संग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि हमारे बच्चों में आरंभ से ही शुभ संस्कार बनने लगें।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम :*

"श्री रमेश जी"

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