अपनी मंजिल को पा जाते , कांटों पर नित चलते-चलते।।

 

               उपस्थित साहित्यकार बंधु

हम अनाड़ी जहां के तहां रह गए ,सारी दुनिया कलेवर बदलती रही।

सबके होठों पर मुस्कान खिल न सकी, कामना मन में यूं ही मचलती रही।।

आज के यथार्थ धरातल पर प्रस्तुत यह गीत वरिष्ठ कवि जयप्रकाश मल्ल जी ने भागीरथी सांस्कृतिक मंच , गोरखपुर की 770 वी  काव्य गोष्ठी में पढ़ी।

इस गोष्ठी का आयोजन संस्था सचिव बृजेश राय जी के आवास पर संपन्न हुई। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि सुरेंद्र मोड़ जी ने व संचालन युवाकवि कुन्दन वर्मा पूरब ने किया।

कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ भाई बृजेश राय की वाणी वंदना से हुआ।

तत्पश्चात सिद्धार्थनगर से पधारे युवा कवि डॉ. आनंद कुमार सुमन ने मंजिल को प्राप्त करने के लिए निरंतर चलने की सीख देते हुए यह गीत पढ़ा-

थकते नहीं जो चलते-चलते , आगे बढ़ते हंसते-हंसते। अपनी मंजिल को पा जाते , कांटों पर नित चलते-चलते।।

इसी क्रम में कौड़ीराम से पधारे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अनिल कुमार गौतम ने आज की आदमियत पर सवाल उठाते हुए रचना पढ़ी- रोते बिलखते/और घुटती जिंदगी/ तन है जिंदा/ मन है मुर्दा/ क्या यही है ? आदमी।

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि सुरेन्द्र मोड़ ने  वैज्ञानिक प्रगति को मानव के नशे से जोड़ते हुए तंज कसा -

प्रगति का मानव को नशा है।

 विज्ञानी विषैले नाग ने डंसा है।।

अंग्रेजन कवियों ने कार्य पाठ के उनके नाम है- सर्वश्री कुन्दन वर्मा पूरब, बृजेश राय व डा. सत्यनारायण पथिक आदि।

अंत में सभी के प्रति आभार व्यक्त किया संस्था सचिव भाई बृजेश राय जी ने।

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