सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी
यह भौतिक प्रकृति स्वभाव से ही अंधकारमयी है। यहां पग-पग पर दुखों की भरमार है। भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियों के सभी जीवों को कम/अधिक, दुख, पीड़ा जीवन भर मिलते ही रहते हैं। यहां के सभी सुख अस्थाई है। यहां के सुख तो घंटो/दिनों के हिसाब से आते हैं, लेकिन दुख महीनों/सालों के हिसाब से आते हैं। अर्थात् दुख रहित सुख नहीं है, जबकि आध्यात्मिक जगत में आनन्द ही आनन्द है। फिर भी सभी इंसान भौतिक सुखों के पीछे ही क्यों भागते हैं? मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जाना-समझा और पाया जा सकता है और भौतिक प्रकृति के दुखों से बचा जा सकता है।
केवल मनुष्य योनि में ही आध्यात्मिक यात्रा में उन्नति की जा सकती है। अन्य शेष सभी योनियों में केवल भौतिक यात्रा के पड़ावों में ही हम घूमते रहते हैं। मनुष्य योनि पाकर हम सभी के पास परमात्मा को जानने - समझने और पाने का एक अवसर है। इस आध्यात्मिक यात्रा की नींव ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से ही पड़ती है। और यात्रा की शुरुआत तब होती है, जब हम सकाम कर्मों की बजाय निष्काम कर्म करने प्रारंभ कर देते हैं। तभी माया/प्रकृति का नया बंधन नहीं होता। फिर धीरे धीरे ज्ञान वैराग में वृद्धि होने से यात्रा आगे बढ़ने लगती है। और भक्ति का अंकुरण पड़ने से हमारी आध्यात्मिक यात्रा गति पकड़ लेती है। और एक दिन भगवान की कृपा से हमें माया नहीं बांधती है। यही मनुष्य जन्म की सार्थकता है।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम*
"श्री रमेश जी"
