गुरु ही शिष्य के अज्ञान तिमिर को दूर कर उसमें ज्ञान रूपी प्रकाश को उजागर कर देता हैं।

 

            साध्वी सुश्री भाग्यश्री भारती जी 

                      विचार देती हुई

                  कथा की कुछ झलकियां

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से दिनाक 24 अप्रैल से 30 अप्रैल तक,सायं 6 बजे से 9 बजे तक सिंदुली बिंदुली , ग्राम बड़गो तारामंडल रोड, जिला गोरखपुर में  सात दिवसीय श्रीमद्भागवत पुराण कथा ज्ञान यज्ञ का अनुष्ठान किया गया है। कथा के पंचम दिवस में परम पूजनीय श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सुश्री भाग्यश्री भारती जी ने चतुर्थ स्कंध् के अंर्तगत बालक ध्रुव की गाथा का व्याख्यान करते हुए कहा कि ध्रुव की बालक अवस्था है लेकिन वो प्रभु से मिलने की उत्कंठा लिए वन में जाकर तपस्या करनी शुरु कर देता है। जहाँ पर उसकी भेंट नारद जी से होती है जो उसको ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर घट के भीतर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं। आज मानव भी प्रभु से मिलने के लिए तत्पर है लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई भी साधन नहीं है। हमारे समस्त वेद-शास्त्रों व धार्मिक ग्रन्थों में यही लिखा गया है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल गुरु की शरणागति होना पड़ता है। गुरु ही शिष्य के अज्ञान तिमिर को दूर कर उसमें ज्ञान रूपी प्रकाश को उजागर कर देता हैं। उन्होंने कहा कि जब भी एक जीव परमात्मा की खोज में निकला है तो वह सीधे परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर पाया। गुरू ही है जो जीव और परमात्मा के मध्य एक सेतु का कार्य करता हैं। परमात्मा जो अमृत का सागर है किंतु मानव उस अमृतपान से सदा वंचित रह जाता है। पिपासु मनुष्य तक मेघ बनकर जो अमृत की धरा पहुंचाता है वह सद्गुरू है। सद्गुरू से संबंध् हुए बिना ज्ञान नहीं हो सकता। गुरू इस संसार सागर से पार उतारने वाले हैं और उनका दिया हुआ ज्ञान नौका के समान बताया गया है। मनुष्य उस ज्ञान को पाकर भवसागर से पार और कृत कृत हो जाता है।मंच संचालन करते हुवे स्वामी अर्जुनान्द जी ने कहा गोरखपुर में पिछले 25 बर्षों से संस्थान के माध्यम से विभिन्न आध्यात्मिक कार्यक्रम के साथ सामाजिक कार्य भी किये जा रहे है।अभावग्रस्त बच्चों के लिए मंथन प्रकल्प के माध्यम से कई विद्यालय संचालन किया जा रहा है।  स्वामी जी ने आगे कहा श्री आशुतोष महाराज जी केवल परमात्मा की चर्चा नही बल्कि दिव्य नेत्र के माध्यम से परम प्रकाश स्वरूप का दर्शन करवाते है । मंचासीन संत समाज ने सुमधुर भजन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रों से व समापन मंगल आरती से हुवा। कार्यक्रम के मुख्य यजमान देवेंद्रधर दुबे जी , राज कुमार शाही , प्रियंका वर्मा , समारू केवट ऋषव श्रीवास्तव , अनिल श्रीवास्तव मोहिनी श्रीवास्तव जी उपस्थित रहे।

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