श्री उमाकांत बाजपेई
राजकीय मान्यता प्राप्त पत्रकार बाराबंकी
भारत के लोक प्रसारक आकाशवाणी में नए नए प्रयोग हो रहे हैं जिससे ये अपनी उपादेयता खोती जा रही है। आकाशवाणी अपने सौ वर्ष पूरे करने जा रही और और विश्व के सबसे पुराने मीडिया संगठनों में एक है। फिर भी इसके वर्तमान अधिकारी इसकी प्रतिष्ठा और उपयोगिता पर लगातार बट्टा लगाते जा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निराशाजनक प्रसारण।
जब पूरी दुनिया के मीडिया संस्थानों ने राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का सीधा प्रसारण अयोध्या से किया वही आकाशवाणी ने खाना पूर्ति करते हुए प्रसारण ऑफ ट्यूब मोड में किया। ऑफ ट्यूब कमेंट्री में किसी दूसरे मीडिया चैनल की कवरेज को टेलीविजन स्क्रीन पर देखकर स्टूडियो से किया जाता है। ये एक तरह से जनता को मूर्ख बनाया जाता है क्योंकि इस माध्यम से किए जाने वाले प्रसारण में कोई भी प्रतिनिधि कार्यक्रम स्थल पर नहीं होता। इस कार्यक्रम के निराशजनक प्रसारण में आकाशवाणी अयोध्या और लखनऊ समान रूप से जिम्मेदार रहे और श्रोताओं तक सजीव विवरण नहीं भेजा गया। अयोध्या में सूत्रों ने बताया की आकाशवाणी की महानिदेशक ने इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम की तैयारियों का देखने की जहमत भी नही उठाई जबकि स्वयं सूचना प्रसारण सचिव श्री अपूर्व चंद्र भी कई बार स्वयं अयोध्या दौरे पर आए। जब अयोध्या में तीर्थ क्षेत्र के पदाधिकारियों से बात की गई तो ये पता चला की आकाशवाणी ने श्री राम जन्मोत्सव कार्यक्रम के सजीव प्रसारण की कोई तैयारी या संपर्क नहीं किया है जबकि अयोध्या से प्रसारण की परंपरा दशकों से कनक भवन से चलती आ रही है जब कोई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल अयोध्या से कोई कवरेज नही करता था। इस सजीव प्रसारण के लिए बकायदा अयोध्या प्रशासन विगत वर्षों में आकाशवाणी से अनुरोध करता रहा है।
आज भी आकाशवाणी जन माध्यम है। जहां न टीवी है, न अखबार वहां भी रेडियो तरंगे पहुंचती हैं। आकाशवाणी का प्रसारण सीमावर्ती देशों में भी सुनाई देता है और एप के माध्यम से पूरी दुनिया में। जब पूरी दुनिया में मीडिया के क्षेत्र में नए नए प्रयोग हो रहे हैं, इस में अयोध्या को आकाशवाणी द्वारा उपेक्षित करना बहुत निराशा जनक है। जब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र भी भीड़ को कम करने और घर पर ही पूजा अर्चन की बात कहता है, ऐसे में दूर दराज गांवों और शहरों में दशकों से होने वाला सजीव प्रसारण न पहुंचना आकाशवाणी के भविष्य और लोकप्रियता के लिए भी ठीक नहीं है। लोकप्रसारक आकाशवाणी के अधिकारी मनमाने ढंग से कार्य करने लगे हैं और लोकहित जनहित और भारत की सांस्कृतिक विविधता को देश विदेश में पहुंचाना अब हासिए पर हो गया है।
Bahut hi sochniya hai
ReplyDeleteसादर धन्यवाद।
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