*पहले भगवान को तत्वरुप से जानें, फिर श्रद्धापूर्वक मन से मानते हुए व्यवहार में लाएं।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

किसी भी कार्य को करने के लिए शक्ति की जरूरत पड़ती है।  शक्ति कहीं भी हो, सदा अपना कार्य अदृश्य रूप में रहते हुए ही करती है।  जैसे विद्युत शक्ति फ्रीज को ठंडा और हीटर को गरम करने का काम करती है। दूसरी बात यह जड़ शक्ति भी किसी अन्य  चेतन/आत्मा  या परमचेतन/परमात्मा द्वारा ही संचालित होती है। इसी तरह मनुष्य शुभ कार्य करे या अशुभ कार्य करे, दोनों ही कार्यों में आत्मा/भगवान की शक्ति अपना काम करती है। अर्थात शक्ति बुरा कार्य करने में भी उतना ही सहयोग देती है, जितना अच्छा कार्य करने में सहयोग देती है।

  जानना, मानना और स्वभाव में ले आना, इन सभी बातों में बहुत गहरा अंतर है।  मनुष्य योनि में ही परमात्मा को तत्वरूप से जाना समझा और पाया जा सकता है। आज संसार में बहुत अधिक लोग भगवान को भय से बिना जाने ही मान लेते हैं। अक्सर धर्म की दुनिया में ऐसे लोगों की भीड़ देखने में आती है, जो अंधविश्वास की गहरी खाई में गिर जाते हैं।  कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो जानकर अधूरे मन से ही मानते हैं, व्यवहार में या अपने स्वभाव में नहीं लाते। लेकिन ऐसे लोग केवल गिनती के ही होते हैं, जो पहले भगवान को तत्वरुप से जानने का प्रयास करते हैं।  फिर श्रद्धापूर्वक मन से मानते भी हैं और साथ ही व्यवहार में लाने का प्रयास भी शुरू कर देते हैं। सिर्फ ऐसे ही लोगों की वास्तव में आध्यात्मिक यात्रा आरंभ हो पाती है। हम सभी मनुष्यों को अपनी-अपनी स्थिति का स्वयं ही आंकलन करना चाहिए।  और यथा संभव अपनी स्थिति में सुधार लाते हुए भगवान से जुड़ना चाहिए, जिसके लिए हमें मनुष्य योनि प्राप्त हुई है।

  अतः हमें किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए।  तभी मानव जीवन सार्थक होता है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम*

"श्री रमेश जी"

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