सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार एक अजनबी किसी के घर गया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष में बैठ गया।वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा।तो उसने वहा टंगी एक पेन्टिंग उतारी और जब घर का मालिक आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै आपके लिए लाया हूँ। घर का मालिक, जिसे पता था कि यह मेरी चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया। अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर, जो कि पहले से ही उसका है, उस आदमी को खुश होना चाहिए?
मेरे ख्याल से नहीं....
लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ भी करते हैं।
हम उन्हें रूपया, पैसा चढाते हैं और हर चीज जो उनकी ही बनाई है, उन्हें भेंट करते हैं।
लेकिन मन में भाव रखते हैं कि ये चीज मैं भगवान को दे रहा हूँ। और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें।
मूर्ख हैं हम।
हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब चीजों की जरुरत नहीं।
अगर आप सच में उन्हें कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए।
उन्हें अपने हर एक श्वास में याद कीजिये और
विश्वास मानिए प्रभु जरुर खुश होंगे।
'अजब हैरान हूँ भगवन तुझे कैसे रिझाऊं मैं;
कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे तुझ पर चढाऊं मैं।'
भगवान ने जवाब दिया : संसार की हर वस्तु तुझे मैनें दी है। तेरे पास अपनी चीज सिर्फ तेरा अहंकार है, जो मैनें नहीं दिया।उसी को तूं मेरे अर्पण कर दे। तेरा जीवन सफल हो जाएगा।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
