*सत्य का संग करना ही सत्संग है, जो केवल मनुष्य योनि में ही संभव है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य ही बुद्धिमान के साथ-साथ विवेकशील भी होता है। एक विवेकशील मनुष्य ही भगवान को जान-समझ सकता है। लेकिन फिर भी अक्सर ऐसा देखा जाता है कि मनुष्य अज्ञानतावश छोटे-छोटे संसारी सुखों को पाने के लिए  बड़े-बड़े दुखों को सहने का समझौता कर लेता है। जबकि मनुष्य जन्म दुखों की दलदल से निकल कर परम सुख यानी आनंद/भगवान को पाने के लिए ही मिला है। यह  तभी संभव हो सकता है, जब मनुष्य अपने जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरन्तर ध्यान साधना व सत्संग करता है।

      सत्य का संग करना ही सत्संग है, जो केवल मनुष्य योनि में ही संभव हो सकता है, अन्य किसी भी योनि में नहीं। आज भारत में ही नहीं, विदेशों में भी सत्संग बहुत लोगों द्वारा होता हुआ दिखाई तो देता है, लेकिन अधिकांश लोगों का सत्संग बेमन से होता है। देखिए, ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर श्रद्धापूर्वक सत्संग करने से ही ज्ञान मन में टिकता है। फिर टिका हुआ ज्ञान ही मन को भक्ति में लगाता है। भक्ति करने से ही शुद्ध आत्मा अपने मूल स्वरूप में लौटने लगती है। यही हमारी शुद्ध कमाई है, जो अगली मनुष्य योनि में बिना किसी अतिरिक्त परिश्रम के अपने आप ही मिल जाती है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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