*हमारे शास्त्रों में परमात्मा से जुड़ने के लिए आरंभ में धार्मिक कर्मकांड बताए गए हैं।*

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
                     श्री आर सी सिंह जी 

भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियो में सभी जीवों के तीन प्रकार के शरीर होते हैं। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर यानि मन-बुद्धि और कारण शरीर यानि स्वभाव। दूसरी बात, केवल मनुष्य योनि में ही किये गये सभी प्रकार के पाप-पुण्य कर्म लिखे जाते हैं, अन्य किसी भी योनि में नहीं।  शुभ कर्म यानी पुण्य कर्म करने से हमारा स्थूल शरीर पवित्र होता है। फिर ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर श्रद्धापूर्वक गुरु आज्ञा पर चलते रहने से स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर यानी दोनों शरीर पवित्र होते हैं। फिर निरन्तर ध्यान साधना व सत्संग करते-करते आध्यात्मिक ज्ञान स्थिर हो जाता है और भगवान की भक्ति आरंभ हो जाती है।  फिर भक्ति करते रहने से स्थूल शरीर + सूक्ष्म शरीर + कारण शरीर यानी तीनों शरीर ही पवित्र होने लगते हैं।  अर्थात् हमारा स्वभाव भी सुधरने लगता है, जिसके लिए हमें मनुष्य जन्म मिला है। 
      हमारे शास्त्रों में परमात्मा से जुड़ने के लिए आरंभ में धार्मिक कर्म काण्ड बताए गए हैं। इन्हें भले ही लोभ से करें या भय से करें।  इनका केवल इतना ही लाभ है कि हमारी अधोगति होने की संभावनाएँ कमजोर पड़ने लगती है। वास्तव में परमात्मा की दिशा में चलने की यह एक आरंभिक प्रक्रिया है। जैसे बच्चे को प्ले स्कूल /नर्सरी की कक्षा में भेजा जाता है, ताकि बच्चा कुछ सीखने लगे और घर पर करने वाली शैतानियों से भी बच जाए। फिर आगे एक लम्बी यात्रा, जैसे प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल, फिर कालेज आदि में पढ़ना होता है, ताकि जीवन में एक अच्छी नौकरी मिल सके। ऐसे ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर आध्यात्मिक उन्नति करते-करते मनुष्य को एक दिन भगवान की सेवा यानी भक्ति नसीब हो जाए, यही मनुष्य योनि की सार्थकता है। 
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"

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