सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीश्रीरामचरितमानस में कहा गया है कि संसार में सत्य के सिवाय अन्य कोई धर्म नहीं है। अर्थात जिसने परमात्मा को हृदय में जान लिया, देख लिया, उस धार्मिक पुरुष का कर्तव्य है कि वह धर्म के मार्ग पर अग्रसर हो। लेकिन जो व्यक्ति धर्म से हीन है, उसके सम्बन्ध में कहा है -
"धर्मेण हीना:पशुभि: समाना:।"
धर्म को न जानने के कारण ही आज मनुष्य पशुवत आचरण करता है।शास्त्रों में धर्म से हीन व्यक्ति को पशु के समान बताया गया है। केवल ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना ही मानव के लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह तो एक संदेश है कि, ईश्वर कण-कण में विद्यमान है। उस ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। हमें सुख, शांति की प्राप्ति न तो किन्हीं सम्प्रदायों के द्वारा ही हो सकती है और न ही यह मत मतान्तरों द्वारा संभव है। इनके द्वारा तो मनुष्य और उलझ जाता है। क्योंकि परमात्मा बुद्धि गम्य नहीं है, उसे तो ज्ञान गम्य कहा गया है।
"ज्ञान ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।"(गीता)
वह ज्ञान जो जानने योग्य है वह तत्व ज्ञान के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है जो सभी के हृदय में समाया हुआ है। कबीर दास कहते हैं -
'कबीरा जहा गिआनु तह धरमु है जहा झूठु तह पापु।
जहा लोभ तह कालु है जहा खिमा तह आपु।।'
अर्थात जहाँ पर ज्ञान है, वहीं धर्म है। धर्म को हम शब्दों के द्वारा नहीं समझ सकते। शब्द स्वयं में पूर्ण न होने के कारण हमें सत्य तक नहीं ले जा सकते हैं।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"