दिनांक बाईस जून दो हजार चौबीस को सनातन विक्रमाब्द संवत् दो हजार इक्यासी का तीसरा माह अर्थात् ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि जो तिथि साहित्य जगत के शिरोधार्य सन्त कबीर दास जी के जयन्ती के रूप में सर्वविदित है।
ऐसे में प्रत्येक पूर्णिमा की तिथि में *"पूर्णमासीय काव्य सन्ध्या संगोष्ठी"* का आयोजन आयोजित करने वाली *साहित्यिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था "सलिल"* ने अपने काव्य श्रृंखला का दो सौ छब्बीसवाँ आयोजन सदैव की भाँति धर्मशाला बाजार क्षेत्र में स्थित *"आर्ष आश्रम"* के सभाकक्ष में आयोजित किया।
इस काव्यगोष्ठी की सभाध्यक्षता आदरणीय *चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिञ्चन"* जी ने किया।
मुख्य अतिथि के रूप में आदरणीय *डॉ० अविनाश पति त्रिपाठी* जी गोष्ठी में विराजमान रहे।
गोष्ठी परम्परानुरूप माँ सरस्वती के श्रीचरणों में दीपोद्दीपन प्रदीप्त करने के साथ आदरणीय *नन्द कुमार त्रिपाठी "गुमनाम अनजान"* के सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ हुई।
गोष्ठी में काव्यधारा का श्री गणेश हो इसके लिये सर्वप्रथम आवाहन किया गया
*शिवशक्ति निषाद* जी का जिन्होंने अपनी पंक्ति में कहा --
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*गरमी अउर लूह के रिकार्ड टूटत बा।*
*मोदी सरकार के केवल विकास सूझत बा।।*
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*मृदुत्पल नीलोर्मि गुप्त"सूक्ष्म"* की पंक्ति ने सबको ये संदेश दिया ---
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*जो आया है वो जायेगा आज नहीं तो कल।*
*धरती पर ही भोगेगा वह निज कर्मों का फल।।*
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*नील कमल गुप्त "विक्षिप्त"* ने सुनाया :-
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*कब जागेगा ज्ञानलय लल?*
*कब जानोगे क्या है सरल??*
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*निर्मल कुमार गुप्त "निर्मल"* की पंक्ति अध्यात्म ज्ञान की ओर ले गया :-
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*स्थूल शरीर में सूक्ष्म शरीर के कारण शरीर में रहते हैं निरंकार।*
*ब्रह्मज्ञानी नमन करते मगन दिखते प्राणी प्राणी में इनको निहार।।*
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*अरविन्द "अकेला"* :- ने चुगली की चिंगोटी से सबको आकर्षित किया --
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*चुगली की तेज धार, अपने खून के रिश्ते को भी काट देती है।*
*अगर चल गई ठीक-ठाक तो पति-पत्नी को भी बाँट देती है।।*
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*अवधेश कुमार शर्मा "नन्द"* की पंक्ति इस प्रकार रहे ----
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*टले संकट रखो धीरज,तराना साथ में होगा।*
*सखे! गर मुस्कुराओगे, बिराना साथ में होगा।।*
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*राम समुझ साँवरा* जी ने आज की तिथि के अनुरूप सन्त कबीर दास जी का स्मरण किया उनके जीवनी पर प्रकाश डालते हुवे :-
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*आमी नदी के तट पे साधना किलें सन्त कबीर हो।*
*ज्ञान की ज्योति ईहाँ जरउलैं अक्खड़ मस्त फकीर हो।।*
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*राम सुधार सिंह "सैंथवार"* जी ने कहा --
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*माँ की ममता मोल न माँगे.....*
*शिशु हित नित निशा जागरण,सब इच्छायें त्यागे।।*
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*नन्द कुमार त्रिपाठी* जी ने कहा अपने पंक्ति के माध्यम से ---
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*मुश्किल बा सस्ता मिलल,नून, खून, कानून।*
*करीं यही विनती मिले,रोटी दूनो जून।।*
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*डॉ०अविनाश पति त्रिपाठी* जी ने वर्तमान को अपने पंक्ति में समेट कर कहा :-
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* की नौटंकी का बुखार।*
*चन्द्र, नितीश, जी जो धीरे धीरे प्याज की छिलके की भाँति रहे हैं उतार।।*
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अन्त में सभी कवियों में की प्रसंशनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हुवे सभाध्यक्ष
*चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिञ्चन"* जी ने कहा
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*अगणित कण्ठों से हो प्रतिगुञ्जित सभी कर रहे तेरा अभिनन्दन।*
*सुगन्धि तुम्हारे गाथा के फैले, दसों दिशाओं में मलयागिरि चन्दन।।*
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ऐसे ही शुभकामनाओं के साथ आह्लादपूर्ण भाव से ओतप्रोत हो ये गोष्ठी समापन में समाहित हुई।
निषाद जी की रचना वक्तिगत द्वेषपूर्ण जो साहित्यकार के अनुकूल नहीं है।
ReplyDeleteनीलकमल गुप्त जी की रचना बहुत सराहनीय है उन्हे साधुवाद।