**राम राज्य और ब्रह्मज्ञान**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

समाज में राम राज्य तभी स्थापित हो सकता है, जब  इसमें रहने वाले मानव हृदयों में राम राज्य स्थापित हो जाए।  आंतरिक राम राज्य ही बाह्य राम राज्य का आधार  है। इसलिए शास्त्रों में मानव तन को भी अयोध्या की संज्ञा दी गई - अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। अर्थात यह मानव देह आठ चक्रों व नवद्वारों से परिपूर्ण अयोध्या नगरी है। इस आंतरिक अयोध्या में अखंड राम राज्य स्थापित करने के लिए दो चरणों से गुजरना ज़रूरी है। पहला- भीतर व्याप्त दुष्प्रवृतियों रूपी असुरों का हनन।दूसरा- राम का आंतरिक सत्ता पर राज्याभिषेक। 

इन दोनों चरणों की पूर्ति के लिए ब्रह्मज्ञान द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार करना अति आवश्यक है।भीतर श्री राम रूपी सूर्य के उदित होने के बाद ही हमारी आंतरिक नगरी असुर (विकार) विहीन हो पाती है। ऐसे शांत मनोराज्य में ही श्री राम सत्तारूढ़ होते हैं!

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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