सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी भगवान् विष्णु के श्रीरामावतार में जब रावण सीताजी को हरकर लंका में ले गया, तब सुग्रीव के साथ अठारह पद्म वानर सेना लेकर श्रीराम समुद्र तट पर आये। वहाँ वे विचार करने लगे कि कैसे हम समुद्र को पार करेंगे और किस प्रकार रावण को जीतेंगे।
इतने में ही श्रीराम को प्यास लगी। उन्होंने जल माँगा और वानर मीठा जल ले आये। श्रीराम ने प्रसन्न होकर वह जल ले लिया। तब तक उन्हें स्मरण हो आया कि मैंने अपने स्वामी भगवान शंकर का दर्शन तो किया ही नहीं। फिर यह जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ?
ऐसा कहकर उन्होंने उस जलको नहीं पिया। जल रख देने के पश्चात् रघुनन्दन ने पार्थिव-पूजन किया। आवाहन आदि सोलह उपचारों को प्रस्तुत करके विधिपूर्वक बड़े प्रेम से शंकर जी की अर्चना की। प्रणाम तथा दिव्य स्तोत्रों द्वारा यत्नपूर्वक शंकर जी को सन्तुष्ट करके श्रीराम ने भक्ति भाव से उनसे प्रार्थना की
श्रीरामजी बोले- उत्तम व्रत का पालन करनेवाले मेरे स्व स्वामी देव महेश्वर! आपको मेरी सहायता करनी चाहिये। पर सहयोग के बिना मेरे कार्य की सिद्धि अत्यन्त कठिन हो रही है। रावण भी आपका ही भक्त है। वह सबके लिये सर्वथा दुर्जय है। परन्तु आपके दिये हुए वरदान से वह सदा दर्प में भरा रहता है। वह त्रिभुवन विजयी महावीर है। इधर मैं भी आपका दास हूँ, सर्वथा आपके अधीन रहने वाला हूँ। सदाशिव! यह विचारकर आपको मेरे प्रति विशेष कृपालु होना चाहिये।
इस प्रकार प्रार्थना और बारंबार नमस्कार करके उन्होंने उच्च स्वर से 'जय शंकर, जय शिव!' इत्यादि का उद्घोष करते हुए शिवजी का स्तवन किया। फिर उनके मन्त्र के जप और ध्यान में तत्पर हो गये।
तत्पश्चात् पुनः पूजन करके स्वामी के आगे नाचने लगे। उस समय उनका हृदय प्रेम से द्रवित हो रहा था। फिर उन्होंने शिव के सन्तोष के लिये गाल बजाकर अव्यक्त शब्द किया। उस समय भगवान शंकर उनपर बहुत प्रसन्न हुए और वे ज्योतिर्मय महेश्वर वामाङ्गभूता पार्वती तथा पार्षद गणों के साथ शास्त्रोक्त निर्मल रूप धारण करके तत्काल वहाँ प्रकट हो गये।
श्रीराम की भक्ति से महेश्वर भगवान शिव अति प्रसन्न हो उठे। उन्होंने कहा- 'श्रीराम! तुम्हारा कल्याण हो, वर माँगो।' उस समय उनका रूप देखकर वहाँ उपस्थित हुए सब लोग पवित्र हो गये।
शिवधर्म परायण श्रीरामजी ने स्वयं उनका पूजन किया। फिर भाँति-भाँति की स्तुति एवं प्रणाम करके उन्होंने भगवान शिव से लंका में रावण के साथ होने वाले युद्ध में अपने लिये विजय की प्रार्थना की। तब रामभक्ति से प्रसन्न हुए महेश्वरने कहा- 'महाराज! तुम्हारी जय हो।' भगवान शिव के दिये हुए विजय सूचक वर एवं युद्ध की आज्ञा को पाकर श्रीराम ने नतमस्तक हो हाथ जोड़कर उनसे पुनः प्रार्थना की।
श्रीराम बोले- मेरे स्वामी शंकर! यदि आप सन्तुष्ट हैं तो जगत के लोगों को पवित्र करने तथा दूसरों की भलाई करने के लिये सदा यहाँ निवास करें।
श्रीराम के ऐसा कहने पर भगवान शिव वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये। तीनों लोकों में श्रीरामेश्वर के नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
