**BIO-CLOCK** या जैविक घड़ी।

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

अगर हमें सुबह जल्दी बाहर जाना है या कुछ काम है, तो हम सुबह 4.00 बजे का अलार्म लगाकर सो जाते हैं, 

और अक्सर हम उस दिन Alarm के पहले ही उठ जाते हैं। इसे Bio-clock कहते हैं। 

बहुत से लोग ये मानते हैं कि वो 80-90 की उम्र में चले जाएँगे। और काफी लोग ये विश्वास करते हुए अपनी Bio-clock दिमाग़ में set कर लेते हैं, कि 50-60 की उम्र में सभी बीमारियाँ उन्हें घेर लेंगी। ऐसे लोग सामान्यतः  50-60 की उम्र में बीमारियों से घिर जाते हैं और जल्दी ही भगवान को प्यारे भी हो जाते हैं।

असल में हम अंजाने में अपनी गलत Bio-clock सेट कर लेते हैं।

जापान में लोग आराम से सौ साल तक जीते हैं, क्योंकि उनकी Bio-clock उसी तरह सेट रहती है।

अतः मित्रों,

हम लोग अपनी Bio- clock इस तरह सेट करें, जिससे हम कम से कम सौ साल तक जी सकें।

याद रखिए  Age is just a Number game, but Old Age is a mindset.

कुछ लोग 75 साल की उम्र में अपने आप को young महसूस करते हैं, तो कुछ लोग 50 की उम्र में भी खुद को बूढ़ा महसूस करते हैं।

हमें अपने भीतर ये विश्वास बनाना है कि हम 40 से 60 वर्ष की उम्र में उन सभी बीमारियों से दूर हो चुकेंगे, जो पहले भी कभी हुई हों,

ताकि हमारी bio-clock वैसे ही set हो जाए। 

Then, there is no chance of getting any disease. Look young.

अपनी वेशभूषा, और look सदैव ऐसा रखें ताकि young नजर आएँ।

Do not allow the appearance of ageing. Be active.

अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार वॉकिंग, जॉगिंग कीजिए, और अपने आप को किसी अच्छे काम में व्यस्त रखिये।

ये विश्वास बनाइए कि उम्र के साथ हेल्थ बेहतर होगी। (It's true). 

 NEVER, EVER ALLOW THE BIO-CLOCK SET YOUR ENDING....

 कभी भी Bio-Clock को आपके जल्दी स्वर्ग सिधारने की अनुमति मत दीजिए।

 लाइफ़ में एन्जॉय कीजिए, तभी आप खुश रह पाएंगे। लेकिन एंजॉय करने के तरीके पवित्र व सादगी भरे होने चाहिए।

 प्रकृति के साथ अपना तालमेल ज्यादा से ज्यादा बैठाइए। क्योंकि जो प्रकृति के जितना ज्यादा नजदीक होता है उतना ही स्वस्थ व सुखी रहता है।

ध्यान रखें, हम जैसा अपने मन में सोचते हैं, हमारे शरीर की सारी प्रक्रियाएँ उसी हिसाब से काम करती हैं। अत: जीवन में हमारी सोच, हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए।

किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से मन स्वस्थ, निरोग तथा पवित्र रहता है। मन पवित्र होने से मन में अच्छे विचार आते हैं और हमारे द्वारा अच्छे कर्म होते हैं। यही मानव जीवन की सार्थकता है। 

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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