**ईश्वर को मानने तक सीमित न रहें। ईश्वर का ब्रह्मज्ञान द्वारा अंतर्जगत में दर्शन करें।

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

हम अक्सर आपात स्थितियों में भी दूसरों को देखकर व्यवहार करते हैं।अपनी सहज प्रकृति के विरुद्ध जाकर समूह के अन्य लोगों की प्रतिक्रिया पर अधिक निर्भर रहते हैं।हम दूसरों की बुद्धि से कार्य करने लगते हैं।

    ठीक ऐसा ही व्यवहार समाज में ईश्वर दर्शन अथवा आत्म साक्षात्कार के सम्बंध में भी देखने को मिलता है। संसार में आँख खोलते ही हमें आसपास के लोगों द्वारा यही सुनने को मिलता है कि ईश्वर का दर्शन करना संभव नहीं है।परमात्मा को तो केवल महसूस किया जाता है। यह सुन सुनकर एक साधारण व्यक्ति की यही धारणा बन जाती है।

    किन्तु इसके विपरीत इसी समाज में कुछ ऐसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व भी हुए, जिन्होंने समाज में प्रचलित मान्यताओं व व्यवहारों की डगर नहीं पकड़ी। बल्कि अपनी राहें स्वयं बनाई। इन्होंने ईश्वर को केवल मानने तक ही सीमित नहीं रखा। ईश्वर का साक्षात दर्शन करने की ओर कदम बढ़ाया। ऐसे ही क्रांतिकारी युवा थे-- नरेंद्र, जिन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस जी के पास पहुंचकर पहला प्रश्न पूछा- 'क्या आपने ईश्वर को देखा है?' बालक मूलशंकर (आगे जो दयानंद सरस्वती बने) ने एक ही जिज्ञासा रखी कि 'मुझे चिन्मय शिव कहाँ मिलेंगे!'  बालक नचिकेता ने यमाचार्य के समक्ष ईश्वर को तत्त्व से जानने की जिज्ञासा प्रकट की।फलस्वरूप हर युग में पूर्ण सदगुरुओं के माध्यम से इन सभी के प्रश्नों का समाधान हुआ। इनके लिए परमात्मा का साक्षात्कार संभव हुआ।

  *दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान* भी कई दशकों से रूढ़िवादी मान्यताओं से अलग जागृति की अलख जगा रहा है। आपके हृदय द्वार पर दस्तक देकर आपका आह्वान कर रहा है--  "ईश्वर को मानने तक सीमित न रहो। ईश्वर का ब्रह्मज्ञान द्वारा अंतर्जगत में दर्शन करो।"

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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