सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहनुमान जी एक पहाड़ उठाकर ला रहे थे राम सेतु बनने समय। उस पहाड़ ने बहुत विनती की थी हनुमान जी से कि मुझे भी सेवा में लगा लो प्रभु की। लेकिन....
जब हनुमान जी उसे उठाकर कुछ दूरी तय किए तो श्री राम जी ने आदेश दिया कि जितने चट्टान पत्थर चाहिए थे वो सब मिल गए हैं और जिनके पास जो भी पहाड़,पत्थर है उसको वही रख दीजिए।
यह बात सुनकर हनुमान जी वो पहाड़ रख दिए। लेकिन वो पहाड़ बहुत बहुत दुःखी हो गया कि प्रभु की सेवा से वंचित रह गए हम।
वो रोने लगा और हनुमान जी से बहुत बहुत प्रार्थना की सेवा में ले चलने के लिए। लेकिन हनुमान जी आज्ञा से बाहर कैसे जाए?
सो यह बात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम को बताई। प्रभु उसकी प्रबल सेवा भावना देखकर बोले -"अगले जन्म में (इस जन्म में नहीं) हम इसे सेवा का मौका जरूर देंगे।"
बाद मे अगले युग में द्वापर में, वही पहाड़ गोवर्धन पर्वत बना जिसे श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाया। तब तक वो पहाड़ रो रोकर इंतजार करता रहा प्रभु का।
इसलिए सेवा का अवसर चुके नही प्रार्थना करें महाराज जी से सेवा के लिए।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
