**ज्ञान का सार है आचार**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

एक बार की बात है कुछ शिक्षाविद आचार्य महाप्रज्ञ के सत्संग में गए। महाविद्यालय के एक प्राचार्य ने उनसे पूछा आचार्य श्री, अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षा का भी अवमूल्यन होते देख बहुत पीड़ा होती है। अब स्कूल कॉलेजों का व्यवसायीकरण होता जा रहा है। कृपया बताएं इस पतन का क्या कारण है। आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा, ज्ञान का सार है आचार। यदि दूध में से मक्खन नहीं निकलता तो दूध को सारहीन मानना पड़ता है। नैतिकता पर ध्यान ना देने के कारण ही आज शिक्षा के क्षेत्र में अवमूल्यन दिखाई दे रहा है। जब से शिक्षा का उद्देश्य अर्थ कमाना और नौकरी करने तक सीमित कर दिया गया है तब से यह गड़बड़ी शुरू हुई है। गुरुदेव आचार्य तुलसी ने भी कहा था, शिक्षा केंद्रों से ऐसे छात्र निकलने चाहिए जिनका आदर्श जीवन हो और वे जिस क्षेत्र में जाएं वहां नैतिकता का आदर्श स्थापित करें। मगर आज तो डिग्री प्राप्त करके धन कमाने की होड़ चल रही है। कोरे बौद्धिक विकास से ना राष्ट्र का भला होता है और ना समाज का। भौतिक विकास के साथ साथ भावनात्मक विकास जरूरी है। जब तक नैतिक मूल्यों, सदाचार को शिक्षा का उद्देश्य नहीं बनाया जाएगा तब तक देश और समाज का सर्वांगीण विकास असंभव है। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अध्यात्मिक ज्ञान भी होना बहुत जरूरी है और यह तभी होगा जब स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा के साथ-साथ ईश्वर के बारे में भी जानकारी दी जाए। आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि आज की जनरेशन में नैतिकता और सदाचार तभी आयेंगे जब वे अपनी पढ़ाई के साथ साथ ईश्वर का भी ध्यान करें। यह न सोचा जाए कि ईश्वर मानने तक ही सीमित है अपितु उसे जाना भी जाता है। ईश्वर को जानने के बाद  आंतरिक परिवर्तन  स्वयेव हो जाता है। क्योंकि ऐसा होता है अक्सर घर परिवार में भी बच्चों को ईश्वर के बारे में सही जानकारी नहीं मिलती। अतः स्कूलों कॉलेजों में धर्म की भी शिक्षा दी जाए। तब शिक्षा केंद्रों से ऐसे छात्र निकलेंगे जिनका जीवन खुद तो आदर्श होगा ही होगा साथ ही साथ उनके संपर्क में आने वाले का भी जीवन आदर्शमय होगा।

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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