**ये सृष्टि ईश्वर की कृपा से चलती है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                    श्री आर सी सिंह जी 

एक घर की मुखिया को, यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके  परिवार का काम नहीं चल सकता है। स्कूल में छोटी सी चपरासी की सरकारी नौकरी था। उसके तनख्वाह से  परिवार का गुजारा चलता था। चुकी कमाने वाला  अकेला था, इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता। वह लोगों के सामने डिंग हाकता था। एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, कि दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता। यह अभिमान व्यर्थ है, कि मेरे बिना परिवार और समाज ठहर जाएगा। सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है। सत्संग समाप्त होने पर घर के मुखिया ने संत से कहा, मैं जो नौकरी करता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे। संत बोले तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है। इस पर घर के मुखिया ने कहा आप प्रमाणित करके दिखाइए। संत ने कहा ठीक है। तुम किसी को बताए बिना घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ। उसने ऐसा किया। संत ने बात फैला दी, कि उसे बाघ अपना भोजन बना लिया है। मुखिया के परिवार वालों ने कई दिनों तक शोक संतप्त में रहे। गांव वाले आखिरकार उसकी मदद के लिए सामने आए। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहाँ नौकरी दे दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्चा देने के लिए तैयार हो गया। एक महिने के बाद घर का मुखिया छिपता छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घर वालों ने भूत समझ कर दरवाजा नहीं खोला। जब वह  गिड़गिड़ाया और सारी बात बताया तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया, हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं। 

उस व्यक्ति का सारा अभिमान चुर चुर हो गया। संसार किसी के लिए  नहीं रुकता! यहां कभी भी किसी के बिना काम चल सकता है। 

यह जगत परमात्मा की इशारे से चलता है। जगत के चलने की हामि वाले, बड़े-बड़े सम्राट राजा -महाराजा मिट्टी हो गए। जगत उसके बिना भी चला है और चल रहा है। 

इसलिए अपने बल का, अपने धन का, अपने कार्यों का अपने ज्ञान का, गर्व व्यर्थ है। 

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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