सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी*1- शैलपुत्री*
"वंदे वाण्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरां।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीं।।"
नवरात्रों के प्रथम दिन माँ की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। माँ का यह रूप "भक्ति में दृढ़ता" का प्रतीक है। क्योंकि 'शैल' माने 'पर्वत' अर्थात जो पर्वत जैसी दृढ़ है, वही शैलपुत्री है।
भक्तजनों, आज हम अपनी ओर देखें, तो हमारी भक्ति में वह अनिवार्य दृढ़ता नहीं है। हमारा श्रद्धा विश्वास परिस्थितियों के थपेड़ों से डांवाडोल हो जाता है। किंतु ग्रंथ बताते हैं कि इस रूप में माँ ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। जब उनकी परीक्षा के लिए सप्तर्षि आए, तो माँ अपने संकल्प पर अडिग रही, चट्टान की भांति।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
