सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी*2- ब्रह्मचारिणी*
"दधाना करपद्माभ्याम क्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्य नुक्ता।।"
इस रूप की पूजा नवरात्रों के दूसरे दिन की जाती है। इसमें माँ ने सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे में माला है। माँ का यह स्वरूप हमें सद्चरित्र की प्रेरणा देता है। क्योंकि जिसके पास चारित्रिक श्रेष्ठता नहीं, वह दुर्गति को प्राप्त होता है।
यह चारित्रिक श्रेष्ठता किस प्रकार प्राप्त होती है? यही समझाने के लिए माँ ने 'ब्रह्मचारिणी' रूप व नाम धारण किया। 'ब्रह्मचारिणी' अर्थात जो ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करती है। यही प्रेरणा हमें माँ दे रही है कि ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करो। मन के गुलाम बनकर वासनाओं के अधीन होकर नहीं! लेकिन अगला प्रश्न यही है कि हम ब्रह्म में स्थित कैसे होंगे? किसी में स्थित होने के लिए सर्व प्रथम उसे जाना जाता है, उसका दर्शन प्राप्त किया जाता है। इसलिए ब्रह्म का साक्षात्कार करना परमावश्यक है। एक तत्ववेता ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु ही हमें दिव्य चक्षु प्रदान कर उस प्रकाश स्वरूप परमसत्ता को हमारे भीतर दिखा सकते हैं।
जब ऐसा ब्रह्मज्ञान गुरू कृपा से हमें मिलता है, तभी हम ब्रह्म में स्थित होकर आचरण कर पाते हैं।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
