*माँ के नौ रूप*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

*4- कूष्माण्डा*

"सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।"

    चौथे नवरात्रे के दिन इस रूप की पूजा होती है। संस्कृत साहित्य के आधार पर इसका अभिप्राय है-

"कु ईषत उषमा अण्डेषु बीजेषु यस्य"

  अर्थात जो किसी भी बीज व अण्डे में से ऊर्जा को निकाल कर ग्रहण करती है, उसे कूष्माण्डा कहा जाता है। इस रूप के द्वारा माँ हमारे ध्येय की ओर इशारा करती है कि इस सृष्टि का सार वह परमात्मा है। जिस प्रकार बीज में वृक्ष व अण्डे में जीव विद्यमान है, उसी प्रकार इस सृष्टि के मूल में ऊर्जा समाइ है, जो परमात्मा का सूक्ष्म स्वरूप है

     अतः उस ऊर्जा को जान लेना ही हमारे नर तन का लक्ष्य है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी'

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