**सबसे मजबूत क्या?**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

समाधि अध्यात्म की पराकाष्ठा है। श्री गुरु आशुतोष महाराज जी इस समय अध्यात्म की इसी उच्च अवस्था में हैं। महाराज जी कहते हैं एक बार नदी के किनारे स्थित एक चट्टान पर एक आचार्य ध्यान में स्थित थे। जब वे ध्यान से बाहर आए, तो उस चट्टान को निहारने लगे। पास में बैठे शिष्यों में से एक शिष्य ने पूछा- गुरूदेव, इस चट्टान में ऐसी क्या विषेषता है, जो आप इसे गौर से देख रहे हैं?

गुरूदेव - चट्टान की मजबूती। 

शिष्य- क्या चट्टान से भी मजबूत कुछ और होता है?

गुरूदेव- चट्टान से भी मजबूत होता है लोहा। वह चट्टान के वक्ष तक को भेद सकता है। और लोहे से मजबूत होती है आग, जो लोहे को पिघलाने की शक्ति रखती है। आग से शक्तिशाली होता है पानी, जो आग को बुझा सकता है। पानी से शक्तिशाली होती है हवा, जो पानी को सुखा देती है। हवा से भी मजबूत होता है साधक का संकल्प। वह संकल्प जिसे तोड़ने की क्षमता संसार की किसी शक्ति में नहीं है।इसलिए तुम्हें अपने लक्ष्य को पाने के लिए संकल्पवान बनना चाहिए।शिष्य- इसका अर्थ यही हुआ न कि संकल्प से बड़ा कुछ भी नहीं?

गुरूदेव- संकल्प से बडा़ होता है शिष्य का धैर्य। चूंकि गुरु असीम और अनन्त हैं, इसलिए गुरु के प्रेम को पाने के लिए शिष्य का धैर्य भी असीम और अंतहीन होना चाहिए। 

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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