सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार की बात है कि एक भैया कहते है कि मैं अनपढ़ था, जब मुझे गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी से दीक्षा मिली थी! एक दिन आश्रम से मैंने दिव्य ज्ञान प्रकाश नामक पुस्तक खरीदी, जिसमें महाराज जी के स्वरूप मुद्रित थे! मैं नियमित रूप से पुस्तक में छपे महाराज जी के चित्रों का दर्शन कर पुस्तक को उलट-पुलट कर रख दिया करता था! मेरे कुछ साथी मुझे कहते थे- तुम रोज इस पुस्तक को उठाकर उसमें कुछ देखते हो, फिर रख देते हो! तुम्हें कुछ पढ़ना तो आता नहीं है, तुम्हें क्या समझ आता होगा? मैंने कहा पढ़ना तो नहीं आता, पर महाराज जी के स्वरूप देखकर मैं पुस्तक वापिस रख देता हूं! यह सुनकर वे लोग मेरी हंसी उड़ाया करते थे! फिर एक सुबह जब मैं साधना में बैठा, तो महाराज जी प्रकट हुए और बोले- कहां है तेरी किताब? मैं बोला यह है महाराज जी!महाराज जी ने कहा इसे पढ़कर तो सुना! मैं बोला महाराज जी मुझे तो पढ़ना नहीं आता! महाराज जी कहते हैं - शुरू तो कर पढ़ना! तू अपने आप पढ़ने लगेगा!
सच में उस अनुभव के दौरान मैं वो पुस्तक पढ़ने लगा और उस अनुभव के बाद महाराज जी की कृपा कुछ ऐसी हुई कि प्रत्यक्ष रुप से भी मुझे धीरे - धीरे पढ़ना आ गया गया, बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के! अपने आप मेरी चेतना को वर्णों की बनावट समझ आने लगी!उनके जोड़ से पूरा शब्द बन जाता और फिर पंक्ति मेरी समझ में आ जाती!
मैं कोरा अनपढ़ था! पर आज महाराज जी की कृपा से मैं वो किताब और अन्य सभी किताबें पढ़ने में समर्थ हूं! आज मुझे लिखना भी आ गया है! यह नि:संदेह प्रतिभा का एक अद्भुत दान है, जो गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने मुझे सहज ही दे दिया! उन्होंने अनुभव में आकर कहा था- शुरू तो कर पढ़ना! तू अपने आप पढ़ने लगेगा! उनकेे इन वचनों को साकार होने में ज्यादा समय भी नहीं लगा!
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
