सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीशबरी श्री राम से बोली - यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते प्रभु ?”
राम गम्भीर हुए, कहा :-
भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है”?
रावण का वध तो, लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर भी कर सकता है|
राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|
जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|
राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय, तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|
राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं मां।
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।
राम ने फिर कहा :-
राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|
राम निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छाओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|
राम निकला है, कि ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”।
राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है”।
राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”। और राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”।
शबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :- "बेर खाओगे राम”?
राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"
शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|
राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-
"बेर मीठे हैं न प्रभु”?
"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ, कि यही अमृत है”|
सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :- "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम।"
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
