**महिला चाहे कहीं भी रहे, पर स्वयं के सत्यम-शिवम्-सुन्दरम रूप को जानना ही उसके वास्तविक सौंदर्य और सशक्तिकरण का परिचायक है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि-- "मनु के अनुसार, वह संतान आर्य (श्रेष्ठ) नहीं है, जिसका सृजन वासना के आधार पर हुआ है। आर्य मात्र वही है, जिसका जन्म एवं मृत्यु वेदों के नियमों के अनुसार है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हर देश में आर्य संतानों का सृजन कम और अनार्य संतानों की पैदावार अधिक हो रही है। यह अपने आप में पाप के आधिक्य का मूल है, जिसे हम कलियुग कहते हैं।"

   जहाँ एक ओर समाज ने महिला को दुर्भाग्यपूर्ण जीवन दिया, वहीं दूसरी ओर महिलाओं ने भी भौतिक अधिकारों व शक्तियों के लोभ में स्वयं के वस्तुकरण को सशक्तिकरण की परिभाषा के रूप में सहर्ष स्वीकार करके, अपने दुर्भाग्य को दुगुना कर लिया।

 यह समाज, जो महिलाओं के संग हिंसा करता है, अपराध करता है, उनका शोषण करता है, उन्हें भोग्या बनाता है; और फिर जब यही समाज उन्हें इन सब व्यवहारों के साथ कुछ भौतिक सुख, समृद्धि प्रदान कर देता है-- तो महिलायें कृतज्ञ हो जाती हैं। "वाह रे नारी! क्या विडम्बना है तेरे अस्तित्व की, तू अपने आप से हारी!"

  महात्मा बुद्ध कहते हैं-- "मानव शरीर परिवर्तनशील है। जो शारीरिक सौन्दर्य भूतकाल में था, वह आज नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं होगा। यौवन काल की काया जितनी सरस होती है, उतनी ही बुढ़ापे में विरस हो जाती है।फिर इस क्षणभंगुर सौन्दर्य पर इतना गर्व क्यों? इसे तो परमार्थ के वस्त्रों से शालीन बनाओ। जीवन की सार्थकता मनमाने ढंग से जीने में नहीं है। यह जीवन तो एक महान कार्य हेतु बलिदान करने के लिए मिला है....।"

  गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है-- "महिला चाहे कहीं भी रहे, पर स्वयं के सत्यम-शिवम-सुंदरम रूप को जानना ही उसके वास्तविक सौन्दर्य और सशक्तिकरण का परिचायक है।"

  विवेकशील सामाजिक वैज्ञानिकों एवं चिंतकों का भी महिला सशक्तिकरण पर मूलभूत मत एक ही है-- "स्वयं को जानना" अर्थात अपने आत्मिक स्वरूप का साक्षात्कार करना।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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