सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीकौन कहता है कि राजनीति में धर्म नही होना चाहिए।राजनीति और धर्म का सम्बंध वैसा ही है जैसा लक्ष्मी और नारायण का। लक्ष्मी राजनीति है और नारायण धर्म हैं। जब लक्ष्मी नारायण के संग होती हैं तो दोनों गरूड़ पर आसीन होते हैं । लेकिन जब लक्ष्मी नारायण से अलग होती हैं तो वे उल्लू की सवारी करती हैं। गरूड़ प्रतीक है...शक्ति और विवेक का और उल्लू प्रतीक है विवेकहीनता का। जो नेता कहते हैं कि राजनीति में धर्म नही होना चाहिए वो या तो धर्म को जानते नही हैं या धर्म से डरते हैं। धर्म एक दर्पण की तरह है। वे धर्मरूपी दर्पण के सामने आने से घबड़ाते हैं कि कहीं उसका पोल न खुल जाए। धर्मविहीन राजनीति धर्म के गुण से दूर हो जाता है। उनमें दया, क्षमा, सत्य, धैर्य आदि नहीं दिखते। और इन गुणो के अभाव में वे क्रूर और स्वार्थी हो जाते हैं। इस स्थिति में राजनीति नीतियुक्त न रहकर Politics बन जाती है। Poly का अर्थ होता है...बहुत, और tics का अर्थ होता है.. .खून चूसने वाला कीड़ा। अर्थात धर्म निरपेक्ष राजनीति खून चूसने वाले कीड़ों का संगठन बन जाती है जो आम जनता का खून पीती है। जिन्होने वास्तविक धर्म को जाना है अर्थात ईश्वर की अनुभूति अपने अंतःकरण में की है, ऐसे लोग राजनीति के लिए वरदान हैं। तभी तो प्लेटो ने कहा था.. राजा को आत्मज्ञानी होना चाहिए, अन्यथा आत्मज्ञानी को राजा बना देना चाहिए।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
