सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीजीव परमात्मा का अंश है। स्वयं को परमात्मा से अलग समझना अज्ञानता है। जिस समय किसी पूर्ण संत की कृपा से यह अज्ञानता दूर होती है, तब वास्तविकता प्रत्यक्ष हो जाती है।
परमात्मा सहज स्वरूप, ज्ञान स्वरूप एवं अनंत स्वरूप है। आत्मा भी परमात्मा का अंश होने के कारण स्वयं भी सत्य स्वरूप, ज्ञान स्वरूप और अनंत स्वरूप है।
महापुरुष कहते हैं.. .
'ब्रह्म सत्यं जगत्मिथ्या जीवो ब्रह्मनैव नापरः।'
अर्थात, ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या है, आत्मा ही परमात्मा है। जब जीवात्मा अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान जाती है, तब वह अपने परम शांत स्वरूप को प्राप्त कर लेती है।
'सरिता जल जलनिधि महुँ जाई ।
होइ अचल जिमि जिव हरि पाई।।'रा.च.मा.
अर्थात, जिस प्रकार नदी का नीर समुद्र में जाकर चिर-विश्राम को पा जाता है, उसी प्रकार जीव जब महापुरुषों द्वारा बताए मार्ग का अनुसरण करता है तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
