सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी'जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ ।
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।' रा. च. मा.
अर्थात, जो जीव मानव तन धारण करने के पश्चात भी भवसागर से पार होने का प्रयत्न नहीं करता है, वह कृतघ्न, मन्दबुद्धि और आत्महत्यारा है। यदि जीव गुरुकृपा का लाभ उठाकर परमात्मा की भक्ति करता है तो वह सदा के लिए कर्म-बंधनों से मुक्त हो जाता है।
हे इंसान, तूं इस शरीर रूपी नगर में एक सीमित समय के लिए आया है। किंतु इस नगर में तूं अकेला नहीं है, वरण काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आदि चोर भी इसमें तेरे संग निवास करते हैं। यदि तूं इनसे सावधान नहीं रहेगा तो फिर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी हाथ आने वाला नहीं है। इस संसार में संत महापुरुष एक पहरेदार का काम करते हैं। वे इस जीव को जगाते हैं कि हे जीव, तेरे शरीर रूपी घर में दिन रात पाँच पाँच चोर चोरी करने का प्रयत्न कर रहे हैं, तूं सावधान हो जा।
यदि किसी घर में चोर चोरी कर ले तो धन दोबारा कमाया जा सकता है। किंतु यदि इस जीव को काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों ने लूट लिया तो मात्र एक जीवन ही नहीं बल्कि अनेकों जन्मों तक कष्ट भोगने पड़ेंगे। कबीर दास कहते हैं-
"निंद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग।
अवर रसायन छाड़ कै, राम रसायन लाख।।"
हे जीव, इस अज्ञानता की निद्रा से जाग, उस प्रभु रूपी औषधि का प्रयोग कर ताकि इस जीवन को सार्थक कर सके। क्योंकि मानव तन अति दुर्लभ है, किन्तु क्षणभंगुर भी है, न जाने कब समाप्त हो जाए।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
