सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहे जीव, यह तेरे जागने का समय है, सोने का नहीं। जब तू इस संसार में आया था तब यह शरीर तेरे साथ था, पर जब तू इस संसार से जाएगा, तब यह शरीर भी तेरे साथ नही जाएगा।
'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' (कठोप.)।
अर्थात, उठो जागो और अपनी मंजिल की प्राप्ति करो। यहां पहले उठने और फिर जागने को कहा है। क्योंकि अज्ञान जनित आंतरिक निद्रा से निवृत्ति पाने के लिए आवश्यक है पहले उठना।
अर्थात हम खोज करें पूर्ण संत की, उनसे अध्यायत्मज्ञान प्राप्त करें और जागृत हों। शरीर की निद्रा से हर इंसान जाग जाता है लेकिन हमें जरूरत है आत्मिक तौर पर जागना। जब यह इंसान आत्मिक तौर पर जागता है तब उसे संसार की वास्तविकता का पता चलता है। यह शरीर और संसार मिथ्या है, अस्थिर है, किन्तु जो शक्ति इसको चला रही है वह स्थिर है, हमें उसी को जानना है।
'ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः' (गीता)।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, यह जीव मेरा ही सनातन अंश है। परन्तु यह जीव कभी नही कहता है कि मैं परमात्मा का हूं और परमात्मा मेरा है। जबकि यह शाश्वत सत्य है कि इस जीव का प्रभु के अतिरिक्त कोई भी साथी नही है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
