**गुरु एक परम चिकित्सक**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी

डॉक्टर-  महाराज जी मैं पेशे से एक डॉक्टर हूं। मैं इस लाइन में खूब पैसा कमा लेता हूं । बहुत बार गरीबों का मुफ्त इलाज करके मानव सेवा भी कर लेता हूं। इसलिए मैं अपने आप में बहुत ही संतोष और पूर्ण लाइफ जीता हूं। तो गुरु और उनके ब्रह्मज्ञान कि मुझे क्या जरूरत है?

श्री महाराज जी-  संतुष्टि और पूर्णता का भाव तो तभी आता है ना जब आपको अपनी लाइन में अपने स्टेटस से बेहतर और कुछ ना लगे। दरअसल, गुरु और ब्रह्मज्ञान, जिनकी आपको जरूरत महसूस नहीं होती, आपकी ही मेडिकल लाइन, आपके ही कांसेप्ट के भीतर बल्कि highest versions है। ब्रह्मज्ञान एक सुप्रीम मेडिकल साइंस है और गुरु एक सुप्रीम डॉक्टर। इसे समझना  जरा भी मुश्किल नहीं। आप जिस शरीर का इलाज करते हैं, वह किससे बना है? कोशिकाओं से ।यह कोशिकाएं बनी है परमाणुओं से। परमाणु बने हैं, अणुओं से। इन अणुओं के अंदर इलेक्ट्रॉन, प्रोट्रोन और न्यूट्रॉन नाम के sub-atomic पार्टिकल्स होते हैं। पर क्वांटम सिद्धांत के अनुसार इन पार्टिकल्स के मौजूद होने पर भी हर एटम में 99.999 परसेंट खाली जगह होती है। एटम की इस सारी खाली स्पेस में तेज उर्जा तरंगे बहती रहती हैं। सारा शरीर उर्जा तरंगों से ही बना है। इसलिए, इन तरंगों में बदलाव लाने से शरीर में कोशिकीय  और रासायनिक बदलाव आसानी से लाए जा सकते हैं।

अगर इन तरंगों को हर तरह से पॉजिटिव बना दिया जाए, तो शरीर में किसी भी लेवल पर कोई बीमारी ही नहीं रहेगी। यहां तक कि इससे जेनेटिक और कैंसर संबंधी रोगों को भी ठीक किया जा सकता है, क्योंकि जेनेटिक कोड से ज्यादा सूक्ष्म वाइब्रेशन कोड (vibration-code) है जो उसके अंदर समाया है। यह बड़ी सूक्ष्म मेडिकल साइंस है। इसलिए कुछ तरंग आधारित दवाओं और पद्धतियों का भी चलन शुरू हो चुका है। पर हमारे ऋषि महर्षि या सद्गुरु हमेशा से इस तरंग आधारित साइंस के जानकार और डॉक्टर्स रहे हैं। उपनिषदों में, शरीर में मौजूद इन तरंगों को प्राणशक्ति कहते हैं। प्राणशक्ति का यह ह्रास कैसे रुके? हमारे शरीर की ऊर्जा तरंगे कैसे पॉजिटिव हो? इसके लिए हमारे सद्गुरु हमेशा से ब्रह्मज्ञान के द्वारा आदि तरंग को इंसान के शरीर में प्रकट करते रहे हैं। इस आदि तरंग को ग्रंथों में नाद, शब्द- ब्रह्मा, नाम, प्राण -तत्व और प्रणव भी कहा गया है। और यह भी कहा गया- यह प्रणव या परम तत्व या तरंग है। विज्ञान भी कहता है -उच्च स्तर की तरंगे निम्न स्तर की तरंगों पर सवार हो सकतीे हैं। यही करिश्मा नाम के प्रकट होने और उसके सुमिरन से एक ब्रह्मज्ञानी साधक के अंदर घटता है। ब्रह्मांड की यह श्रेष्ठतम तरंग उसके शरीर की  नेगेटिव तरंगों पर सवार होकर उन्हें भी पॉजिटिव बना देती है। बदले में हमें मिलता है एक पूर्ण स्वास्थ्य। नाम के सुमिरन से ही योगी लंबी उम्र पाते हैं। इसी नाम की वजह से इंद्रियां सशक्त और निरोगी होती हैं। नाड़ियां और सारा शरीर शुद्ध हो जाता है। इसलिए ब्रह्मज्ञान एक श्रेष्ठतम दवा है और उसे देने वाले सद्गुरु- एक परम चिकित्सक।

**ओम् श्री आशुतोषाय नम**

"श्री रमेश जी"


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