सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।
इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मार कर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया। उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वह मर गया।
इस घटना को देख कर कवि हृदय जागा। वह जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी:
'काग दही पर जान गँवायो।'
तभी वहां एक सरकारी कर्मचारी महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-
'कागद ही पर जान गंवायो!'
तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है....काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था-
'का गदही पर जान गंवायो!'
इसीलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था,
'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।'
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
