सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीप्रभु प्रकाश स्वरूप है, अविनाशी है। प्रभु एक शक्ति है जो कभी भी घटता या बढ़ता नही है। वह अनंत है। सारा संसार परमात्मा के प्रकाशरूप से ही पैदा हुआ है।
'अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।' गीता- 10-20
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं_ "मै सभी प्राणियों के भीतर स्थित आत्मा हूं। सम्पूर्ण प्राणियों का आदि, मध्य व अन्त भी मै ही हूं।" धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आत्मा ही प्रभु का अंश है और वह प्रकाशरूप है।
'ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञान ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।।' गीता- 13-17
अर्थात, वह परमात्मा ज्योतियों की भी ज्योति है। ज्ञान के द्वारा ही उसे जाना जा सकता है और सबके हृदय में आत्मारूप में स्थित है।
लोग केवल धार्मिक ग्रंथों के पढ़ लेने को ही ज्ञान समझते हैं। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण उसे ज्ञान
कहते हैं, जिसके द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है।
'अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्।।' गीता- 13-11
अध्यात्मज्ञान में नित्य स्थित तत्वज्ञान के अर्थरूप
परमात्मा को जानना ही ज्ञान है। बांकि सब अज्ञान ही कहा गया है।
और यह केवल ब्रह्मनिष्ठ गुरू के द्वारा ही प्राप्त होता है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
