**कौन किसी का खाता है, कौन किसी घर जाता है। दाना पानी दाता का, लिखता खेल विधाता है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

आपके घर में जब तक कोई पुण्य शाली व्यक्ति रहता है, तब तक आपके घर में कोई नुकसान नहीं कर सकताl 

जब तक विभीषणजी लंका में रहते थे, तब तक रावण ने कितना भी पाप किया परंतु विभीषणजी के पुण्य के कारण रावण सुखी रहाl परंतु जब विभीषणजी जैसे भगवत  वत्सल भक्त को लात मारी और  लंका से निकल जाने के लिए कहा, तब से रावण का विनाश होना शुरू हो गयाl अंत में रावण की सोने  की  लंका का  दहन हो गया और रावण के पीछे कोई रोने वाला भी नहीं बचाl ठीक इसी तरह हस्तिनापुर में जब तक विदुरजी जैसे भक्त रहते थे, तब तक कौरवों को सुख ही सुख मिला, परंतु जैसे ही कौरवों ने विदुरजी का अपमान करके राज्य सभा से चले जाने के लिए कहा और विदुर जी का अपमान किया, तब भगवान श्री कृष्ण जी ने विदुरजी से कहा कि काका आप अभी तीर्थ यात्रा के लिए प्रस्थान करिए और भगवान के तीर्थ स्थानों पर यात्रा करिए और भगवान श्री कृष्णजी ने विदुरजी को तीर्थ यात्रा के लिए भेज दिया। और जैसे ही विदुर जी ने हस्तिनापुर को छोड़ा, कौरवों का पतन होना चालू हो गया और अंत में राज भी गया और कौरवों के पीछे कोई कौरवों का वंश भी नहीं बचा।इसी तरह हमारे परिवार में भी जब तक कोई भक्त और पुण्य शाली आत्मा होती है, तब तक हमारे घर में आनंद ही आनंद रहता है। इसलिए भगवान के भक्त जनों का  अपमान कभी ना करें। और हां, कभी इस बात का घमंड न करें की देखिए घर का सारा खर्च हम ही चला रहे हैं या उस व्यक्ति का सारा खर्चा मैंने वहन कियाl सच में हम जो कमाई खाते हैं वह पता नहीं किसके पुण्य के द्वारा मिल रही है। इसलिए हमेशा आनंद में रहें, और कोई भक्त परिवार में भक्ति करता हो तो उसका अपमान ना करें, उसका सम्मान करें, और उसके मार्गदर्शन में चलने की कोशिश करें। पता नहीं संसार की गाड़ी किस के पुण्य से चलती हैl 

देव, शास्त्र, गुरु  और बड़ों के प्रति समर्पित रहें। धर्म की जड़ जहाँ होगी वहाँ  अशुभ कर्म आने से डरेंगे l माता-पिता, बड़े बुजुर्गों और अतिथि का हमेशा सम्मान करें और गुरुओं के बताए अनुसार जीवन जियें और भगवान की भक्ति करते रहें।

'छोड़ दिखावा चकाचौंध तूँ काहे मनवा भरमाये, ना जाने किस वेश में तेरे घर नारायण आ जायें।'

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी

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