सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहर रोज सूर्योदय के साथ ही सुबह हो जाती है। सुबह सूर्य की किरणें हमें जगाने के लिए हमारे दरवाजे खिड़कियों पर दस्तक देती हैं। यह किरणें हमारे घर के अन्दर आने को व्याकुल होती हैं। लेकिन हम लोग अधिक नींद का सुख लेने के कारण अपने दरवाजे खिड़कियां बंद कर आगे पर्दा भी कर देते हैं। लेकिन फिर भी सूर्य की किरणें कुछ समय तक खड़ी इन्तजार करती हैं। ठीक उसी तरह भगवान भी हमारे जीवन में हर पल इस इंतजार में बड़े बेसब्ररी से खड़े इन्तजार करते रहते हैं, कि किस पल हम मनुष्य भगवान को याद करें और भगवान हमारे मन में अपने दिव्य गुणों के साथ प्रवेश कर जाए। लेकिन मनुष्य मरते दम तक संसार को ही मन में याद करता रहता है। और मनुष्य योनि में परमात्मा को पाने का अवसर यूँ ही गवां देता है।
शास्त्रों की बातों को पढ़कर या सुनकर, जो मन स्वीकार कर लेता है, वही मन का अस्थाई संस्कार बनने लगता है। लेकिन व्यवहार में ऐसा देखा गया है कि अधिकांश लोग धर्म की बातें पढ़ते हैं और सुनते भी हैं, मन से स्वीकार भी कर लेते हैं, लेकिन व्यवहार में लाते नहीं। परिणामस्वरूप हमारे आपके स्वभाव में धर्म कम नजर आता है, फलस्वरूप कलयुग हर रोज अधिक गहरा होता जा रहा है। आज की सभी बीमारियाँ, वायरस इसी का ही परिणाम है। इसलिए धन से यू-टर्न धर्म की ओर करें। अर्थात अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परमात्मा की स्मृति बनाए रखें। और यह तभी संभव हो सकता है, जब हम किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते हैं।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
