**आप जितना ध्यान साधना सेवा व सत्संग करते हैं, उतना ही अध्यात्म मार्ग पर आगे बढ़ते हैं।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                        श्री आर सी सिंह जी 

एक बार एक भक्त ने गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी से जिज्ञासा कि---महाराज जी, मुझे ज्ञान लिए कई साल हो गए। तब से मैं आपकी आज्ञाओं में चलने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ। पर एक दुविधा है। मुझे यह पता ही नहीं चल रहा कि मैं इस मार्ग पर कितना चल चुका हूँ और कितना सफर बाकी है! कई बार तो लगता है कि मैं वहीँ का वहीँ खड़ा हूँ। कोई प्रगति ही नहीं हुई। इस वजह से मन दुःखी हो जाता है और संशय आने लगते है। मैं क्या करूँ।

श्री आशुतोष महाराज जी-- "आपने कभी गौर किया है कि गाय का बच्चा जन्म लेने के कुछ समय बाद ही चलने--फिरने लगता है।उसी तरह कुछ लोग ज्ञान लेते ही बड़ी गति से आध्यात्म--मार्ग पर चलने लगते है। उनकी उन्नति उनके जीवन में साफ दिखाई देती है। लेकिन कुछ साधकों का आध्यात्मिक जन्म 'अण्डे' की तरह होता है। जब एक मुर्गी अण्डे को सेती है, तो उसे अण्डे में कोई बदलाव होता नजर नहीं आता। न अण्डा घटता है, न बढ़ता है; न ही उसका रूप व् रंग बदलता है। पर फिर अचानक एक दिन उसी अण्डा में से एक चुज्जा निकल आता है। अब सोचिए, क्या चुज्जा एकदम से बन गया? नहीं, बेशक बाहर से अण्डे में कोई बदलाव नहीं होता दिखा, पर भीतर ही भीतर उसका तरल पदार्थ चुज्जे का रूप ले रहा था।

  ठीक इस तरह, जब आप साधना करते है, ज्ञानाग्नि में खुद को सेते हैं, तो आपके भीतर--ही--भीतर, आपके अन्तःकरण में कई बदलाव हो रहे होते हैं। आपके कर्म-संस्कार जलते हैं, दुर्भावनाएँ, विकार नष्ट होते हैं। बेशक, बाहर कोई बदलाव होता नज़र न आए, पर अन्दर से आपका निर्माण हो रहा है। आप जितनी सेवा-साधना करते हैं, उतना ही आध्यात्म-मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं।

  यदि आपमें संशय उठता है, तो मुर्गी से सीख लें। वह पुरे विश्वाश के साथ अपना कर्म करती है। अण्डे को सेती रहती है। इसी प्रकार आप भी ब्रह्मज्ञान पर पूरा विश्वाश रखें। पूरी लगन व दृढ़ता से अपना सेवा साधना रूपी कर्म करें। समय आने पर आपको फल अवश्य मिलेगा। आपकी आध्यात्म-पथ पर हुई उन्नति प्रकट होगी।"

  अतः हमें निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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