**आत्मज्ञान जैसी दुर्लभ वस्तु इस संसार में कोई और नहीं है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                       श्री आर सी सिंह जी 

बहुत से लोग परमात्मा की भक्ति को वृद्धावस्था पर टाल देते  हैं। लेकिन महापुरुष बताते हैं कि जितनी भी जल्दी हो सके आत्मज्ञान की प्राप्ति कर प्रभु की भक्ति कर लो। ध्रुव की आयु मात्र पाँच वर्ष की थी, जब वह आत्मज्ञान प्राप्त कर चुका था। यह शरीर रूपी नौका संसार सागर को पार करने के लिए मिली है, किन्तु इसका कोई पता नहीं कि यह कब टूट जाए।

'नर तन सम नहीं कवनिउ देही। 

जीव चराचर जाचत तेही।। नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी । 

ज्ञान न बिराग भगति सुभ देनी।।' रा. च. मा. 

अर्थात, मानव तन के तुल्य कोई भी तन नहीं है। चराचर जगत के सम्पूर्ण जीव इस तन की याचना करते हैं। क्योंकि मानव शरीर ही ऐसा शरीर है, जिसमें आकर जीव नरक, स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। यह शरीर कल्याणकारी, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है। मनुष्य तन को प्राप्त करके भी भक्ति को न जानना, संसार में इससे बड़ी कोई हानि नही है।

  धन से मानव कभी भी तृप्त नहीं हो सकता। जिस तरह आग में घी डालने से आग और तेज होती है। उसी तरह धन और भोगों की प्राप्ति के साथ साथ भोगने की इच्छा और प्रवल होती है। ईसा मसीह कहते हैं - स्वयं के लिए धन संग्रह न करो जहां कीड़े और जंग नष्ट कर देंगे और चोर चोरी कर लेंगे। प्रभु नाम रूपी धन का संग्रह करना चाहिए जो कभी नष्ट नहीं होता है। विधाता ने इस तन की रचना करने से पहले ही आवश्यक वस्तुओं को बना दिया है। यह तन प्रभु से कुछ मांगने के लिए नहीं अपितु प्रभु से प्रेम करने के लिए मिला है।

'कहहिं संत मुनि बेद पुराना।

नहीं कछु दुर्लभ ज्ञान समाना।।' रा.च.मा.

 संत, मुनि, वेद, पुराण यही कहते हैं कि आत्मज्ञान जैसी दुर्लभ वस्तु इस संसार में कोई और नहीं है।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

" श्री रमेश जी "

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