**गुरुदेव विवेकपूर्ण निर्णय लेकर अपने शिष्य के खतरे को भगा देते हैं।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

बात उस समय की है, जब महर्षि चाणक्य ने भारत को सिकंदर के शासन से आजाद करा दिया था।चंद्रगुप्त मौर्य राजपद पर आसीन हो चुका था।चंद्रगुप्त के रहने के लिए एक बहुत बड़े महल का निर्माण शुरू हुआ। सब सुविधाओं से परिपूर्ण उस महल को बनाने में अथाह संपत्ति और समय लगाया गया। जब महल पूरी तरह बनकर तैयार हो गया तो, चन्द्रगुप्त को  सूचना भिजवाई गई! चंद्रगुप्त महल को लेकर काफी उत्सुक था पर उस में प्रवेश करने से पहले उसने अपने गुरु से अनुग्रह किया कि सबसे पहले वे अपने चरणों से महल को शुभ करें! शिष्य के आग्रह पर चाणक्य ने महल में प्रवेश किया। पूरे महल को अच्छी तरह देखा। हर ओर से उसका निरीक्षण किया !फिर वहचंद्रगुप्त के साथ महल से बाहर आकर खड़े हो गए। चंद्रगुप्त महल की बनावट को देखकर बहुत प्रभावित था। तभी चाणक्य ने गंभीर स्वर में कहा-  चंद्रगुप्त इस महल को अभी के अभी जलाकर राख कर दो। यह कहकर चाणक्य अपनी कुटिया की ओर चल दिए। इतना आलीशान महल और जला दो, गुरुदेव यह कैसा आदेश देकर  चले गए! चन्द्रगुप्त के सामने एक कठिन चयन खड़ा था!मन बुद्धि आत्मा के बीच संघर्ष उठ खड़ा हुआ। चुनाव मुश्किल था। पर अंततः चंद्रगुप्त ने निर्णय कर ही लिया! दो विकल्पों में से एक का चयन किया।मन का नहीं गुरु का।चंद्रगुप्त ने महल को जलाने का निर्देश दे दिया! कुछ ही मिनटों में सारा महल धू-धू करके जलने लगा। आग की लपटों में जलकर वह आलीशान महल राख की ढेरी बनता गया! तभी चौंका देने वाला एक दृश्य सामने आया! महल की राख के साथ कुछ और भी था। कई जली हुई इंसानों की लाशें। उसने अपने गुरु से पूछा गुरुवर कौन थे ये लोग? महल तो पूरी तरह खाली था, फिर ये सब कहां से आए? तभी पीछे से गुरु चाणक्य की आवाज आईं- चन्द्रगुप्त ये दुश्मन सेना के गुप्तचर थे, जो तुम्हें मारने आए थे। पर आपको इसकी जानकारी कैसे हुई आचार्य? महल का निरीक्षण करते समय मैंने कुछ जगहों पर चीटियों के झुंड देखे थे! मैं तभी समझ गया था कि इस महल में गुप्त सुरंग का निर्माण किया गया है। इतना सुनते ही चंद्रगुप्त तुरंत गुरुदेव के चरणों में गिर गया। मन के वशीभूत होकर किया गया चंद्रगुप्त का एक चुनाव उसे राख की ढेरी में बदल सकता था। किंतु गुरुदेव के विवेकपूर्ण निर्णय का चयन कर उसने अपने ऊपर मंडराते घातक खतरे को मिनटों में जलाकर खाक कर दिया। इसलिए हमें चाणक्य जैसे पूर्ण गुरु  की जीवन मे आवश्यकता है।

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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