**समाधि वह उच्चतम पड़ाव है जहाँ चेतना स्वयं को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करती है। आत्मा ब्रह्म स्वरूप हो जाती है।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

समाधि शब्द, ’सम’ + ’आ’ उपसर्गपूर्वक ’धा’ धातु और ’कि’ प्रत्यय करने से बनता है। अर्थात वह स्थिति जिसमें मन का ठहराव होता है, यानि "प्राणियों की वह अवस्था जिसमें उनकी संज्ञा तथा चेतना लुप्त हो जाती है और वे कोई शारीरिक क्रिया नही करते।

योगऋषि पतंजलि के अनुसार-- एक आध्यात्मिक साधक का आत्मिक विकास अष्टांग योग के यम, नियम, प्रत्याहार, प्राणायाम, आसन, धारणा तथा ध्यान के पड़ाव से होता हुआ अंततः समाधि के रूप में अभिव्यक्त होता है।

अतः समाधि वह उच्चतम पड़ाव है जहाँ चेतना स्वयं को पूर्णरूप से अभिव्यक्त करती है।आत्मा ब्रह्म स्वरूप हो जाती है, परिणामस्वरूप साधक परम आनंद का अनुभव करता है।

तत्ववेता महापुरुष, सदगुरु या अवतार स्वंय सच्चिदानंद स्वरूप होते हैं, वे पूर्णता के साकार स्वरूप हुआ करते हैं। अतः जब वे समाधि धारण करते हैं तो उसके पीछे विशेषातिविशेष प्रयोजन होते हैं। ऐसे वृहद संकल्प जिनके द्वारा समाज एवं विश्व का कल्याण होता है।

वर्तमान में श्री आशुतोष महाराज जी विश्व शान्ति के संकल्प हेतु समाधिस्थ हैं, मन में संदेह नहीं, श्रद्धा रखें।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः।**

"श्री रमेश जी"

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