**वेदों का उद्घोष है - विश्व निवासियों, तुम सभी अमृत की संतान हो**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं-

'मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।'

अर्थात, यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में मणियों के सदृश मुझमें पिरोया हुआ है। जो इस सार्वभौमिक ब्रह्म 

सूत्र (आत्मा )का साक्षात्कार कर लेता है, उसी के लिए यह सम्पूर्ण जगत एक दिव्य माला और

प्रत्येक जीव, माला में गुंथी एक मणि के स्वरूप हो जाता है। अपने पराए की संकीर्ण रेखाएं धूमिल

पड़ने लगती हैं। अपनत्व की भुजाएँ विस्तृत हो सम्पूर्ण विश्व का आलिंगन करने को तत्पर हो उठती हैं। आत्मज्ञान के प्रकाश से आलोकित साधक को समस्त चराचर चगत में बस एक ही चैतन्य सत्ता का दर्शन होता है। यही है-

    'आत्मवत सर्वभूतेषु'

और यही सच्चे अर्थों में समता, एकत्व तथा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की स्थापना का मूल आधार है। वेदों का उद्घोष है-

'श्रृन्वन्तु सर्वे अमृतस्य पुत्राः।'

अर्थात, विश्व निवासियों, तुम सभी अमृत की संतान हो।

'संगच्छध्वं संवदध्वं संग वो मनांसि जानताम्।'

अर्थात, सब परस्पर एकत्र होकर एक साथ चलो, एक साथ बोलो, सबके मन एकरस हो जाएं।

**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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