**मौत की पहेली**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि जब हमें किसी दूसरे देश की यात्रा करनी होती है तो आमतौर पर, सारा इंतजाम हम पहले से ही कर लेते हैं। कम से कम यातायात के साधनों और अपने ठहरने के प्रबंध तो करते ही हैं। 

इन सांसारिक मामलों में हम कितना सँभलकर चलते हैं: कोई लम्बी यात्रा सारे इन्तजाम किये बिना तय नहीं करते, लेकिन एक वह यात्रा जो हरएक को तय करनी है, उसके लिये बहुत कम लोग तैयारी करते हैं। कौन इस बात पर विचार करता है कि मृत्यु के बाद की यात्रा हमें कहाँ ले जाएगी या उसे निर्विघ्न बनाने के लिये हम क्या कर सकते हैं ?

सदियों से मृत्यु की पहेली को सुलझाने के लिये दार्शनिकों ने अथक प्रयास किये हैं। परन्तु सच बात तो यह है कि बुद्धि इस विषय में काम नहीं करती। क्या पढ़े-लिखे, क्या अनपढ़, सभी इसका उत्तर पाने में अपने आपको असहाय पाते हैं। न जाने कितने लोगों के मन में यह विचार आता होगा कि कितना सन्तोषप्रद होता यदि कोई वापस आकर अपना अनुभव हमें बताता! हम मृत्यु के विषय में केवल अनुमान लगाते हैं, लेकिन हमारे विचार काल्पनिक हैं- मनुष्य जीवन के अन्त पर, मृत्यु के निश्चित अन्धकार में राहत देने के लिये सुखद मनचाहे विचार ।

सन्तों या पूर्ण आध्यात्मिक गुरुओं ने मृत्यु के रहस्य को सुलझा लिया होता है। अभ्यास द्वारा तथा अपनी चेतना के नियंत्रण द्वारा वे प्रतिदिन अपने शरीर से ऊपर उठकर आध्यात्मिक मण्डलों की यात्रा करते हैं। उनसे उपदेश लेकर हम भी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की युक्ति सीख सकते हैं।

वे उपदेश देते हैं कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिये। यह तो केवल शरीर छोड़ने की क्रिया का नाम है। आत्मा का स्थूल इन्द्रियों से सिमटकर सूक्ष्म मण्डलों में प्रवेश करना ही मृत्यु है। यह तो सिर्फ इस शरीररूपी लिबास को उतारने जैसा है। इससे हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता। मृत्यु के आगे भी जीवन है।

सन्तों ने इस विषय में विस्तार से समझाया है, उन्होंने जीवन के एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाने की युक्ति का वर्णन किया है। उनके द्वारा बताई गई साधना की युक्ति को अपनाने से, शिष्य मृत्यु के द्वार को पार करके इस शरीर में इच्छानुसार लौटना सीख सकता है। केवल अनुभव द्वारा ही व्यक्ति, मृत्यु की वास्तविकता को जान सकता है। बुद्धि इसे समझ पाने में असमर्थ है।

इस विषय की व्याख्या 'आन्तरिक अभ्यास' के अध्याय में विस्तार से की गई है। अभी इसे एक ओर रखकर इस सवाल पर ध्यान देते हैं कि हमें सबसे पहले क्या करना चाहिये। यदि किसी के घर को आग लगी हो तो समझदारी इसी में है कि वह जल्दी से जल्दी वहाँ से बाहर निकलने का प्रयास करे, न कि यह सोचने बैठ जाए कि आग कब और कैसे लगी या किसने लगाई। इन सवालों के जवाब बाहर आने के बाद भी ढूँढ़े जा सकते हैं।

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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