सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीवर्तमान शिक्षा पद्धति, उन्नत विज्ञान, वैज्ञानिकप्र योगशाला, कृत्रिम उपग्रह द्वारा हृदयों में मानवता का संचार नहीं किया जा सकता है। मानव को मानव बनाने का कार्य एक बड़ी चुनौती हैै, जिसे केवल अध्यात्म ने ही स्वीकारा है।ब्रह्मज्ञान की वर्षा ही मानव के कलुषित हृदयों को धो सकती है।
गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि गुरु ही जीवन में परमात्मज्ञान की अमृतमयी वर्षा कर सकता है।
शास्त्रों ने भी सतगुरु के सान्निध्य में जाने का उपदेश दिया--
"तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्। "मुण्डकोप. 1/2/12
अर्थात, उस परब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा लेकर वेद को जानने वाले परब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास ही जाएं। जब एक जिज्ञासु गुरु की शरण में जाता है, तो वे अंतर्दृष्टि खोल देते हैं। उसे उसके हृदय में विराजित प्रभु की प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं। अंतर्ज्योति का बोध करा देते हैं। भीतर इस ज्योति के प्रकट होते ही अज्ञानता का तमस छटने लगता है। हमें चेतनायुक्त बनाता है। विवेकशील बनाता है। वह
विवेकदृष्टि प्रदान करता है, जिससे हम निर्णय कर सकें कि क्या सत्य है, क्या असत्य; क्या महान है, क्या क्षुद्र; क्या करने योग्य है, क्या नहीं।
सारतः, गुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा हमारे भीतर मनुष्यत्व के गुण रोप देता है। ऐसा निर्माण करता है कि हम
दानव से मानव, मानव से देवता, देवता से महात्मा, महात्मा से परमात्मरूप हो जाते हैं।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
