**महर्षि अरविन्द ने कहा था- 'ध्यान साधना से ही स्वतंत्रता के लक्ष्य का सिद्ध होना निश्चित है।**

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                  श्री आर सी सिंह जी 

एक बार पुरनी महर्षि अरविंद के पास खुशी से उछलता हुआ आया और बोला- महर्षि! जिस संगठन के बनने का हमें इंतजार था, उसने आखिरकार आकार ले ही लिया! अब जिस कार्य को करने के लिए हमने सोचा था, वह किया जा सकेगा! इस संगठन की मदद से हम स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में गति ला सकेंगे! है न महर्षि? श्री अरविंद ने पुरनी को उत्तर देने की जगह गंभीर होकर एक प्रश्न पूछ लिया! बोले- तुम्हारी ध्यान साधना कैसी चल रही है पुरनी? पुरनी ने कहा- ध्यान साधना? उसे छोड़िए न महर्षि! अभी तो इस संगठन की सबसे ज्यादा अहमियत है!

महर्षि गंभीर स्वर में बोले- नहीं! जो विशेष भूमिका तुम्हें  सौंपी गई है, इस समय तुम्हारे लिए और इस देश के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता उसी की है!

पुरनी- महर्षि, क्या सच में हमारी ध्यान साधना से वह हो जाएगा, जो हम चाहते हैं? 

महर्षि- हां! उसी से होगा!

पुरनी- महर्षि, पर इस बात की कौन गारंटी देगा कि ऐसा  होगा?

महर्षि- मैं गारंटी देता हूं!इसलिए जाओ और थ्यान   साधना करो!

पुरनी उठकर चल दिया!कक्ष के द्वार तक पहुंचा ही था पर क्योंंकि मन की उथल-पुथल अभी तक शांत नहीं हुई थी इसलिए पीछे मुड़ा और थोड़ा सकुचाते हुए फिर से पूछ बैठा- महर्षि, क्या सच में हमारी ध्यान साधना से ही होगा? उस समय महर्षि अरविंद ने अपने आगे रखी टेबल पर जोर से अपनी मुट्ठी को मारा और बुलंद आवाज में मानो एक भविष्यवाणी कर डाली!बोले- जैसे कल का सूर्योदय होना तय है, ऐसे ही इस ध्यान साधना से ही स्वतंत्रता के लक्ष्य का सिद्ध होना निश्चित है! आगे चलकर महर्षि अरविंद के यह वचन सत्य सिद्धि हुए!

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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