**सतगुरु अपने शिष्य के जीवन में सर्जक, रक्षक, एवं संहारक तीनों की भूमिका एक साथ निभाता हुआ उसका निर्माण करता है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                   श्री आर सी सिंह जी 

आज का विद्वत समाज एक पूर्ण सतगुरु की अनिवार्यता को भूल बैठा है। आप इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि श्रेष्ठ मानव का गठन सदा पूर्ण सतगुरुओं के हस्त तले हुआ है।

स्वामी विरजानंद द्वारा दयानंद सरस्वती,  समर्थगुरु रामदास ने छत्रपति शिवाजी बनाया, चाणक्य ने चंद्रगुप्त को प्रशिक्षण दिया, तो नरेंद्र में छिपे विवेकानंद को परमहंस ने तराशा था। राजसी परिवेश के बीच जनक को गुरु अष्टावक्र ने 'विदेही' बना दिया।

मछुआरे पीटर को जीसस ने संत पीटर बना दिया ।

कहने का भाव यह है कि समाज को ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति गुरुओं की ही देन रहे है।तभी तो शास्त्र ग्रंथों ने  सतगुरु की महिमा गाकर कहा -

'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः'

अर्थात, गुरु ब्रह्मा है, विष्णु है, महेश है। ये त्रिदेव हिंदु संस्कृति में प्रधान है। ईसाई में भी Trinity का जिक्र आता है। अंग्रेजी में परमात्मा को GOD कहते हैं। ये भी इन्ही त्रिदेवों को संकेत करते हैं।

G- Generator अर्थात, सृजनकर्ता (ब्रह्मा);

O - Operator अर्थात, पालनकर्ता (विष्णु );

D- Destroyer अर्थात, संहारकर्ता (महेश)। 

एक सतगुरु अपने शिष्य के जीवन में सर्जक, रक्षक, एवं संहारक तीनों की भूमिका एक साथ निभाता हुआ उसका निर्माण करता है।

**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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