सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीयूनान के एक संत हुए हैं डायोजनीज। एक बार वे दिन के बारह बजे हाथ में लालटेन लिए घूम रहे थे। एक व्यक्ति ने उन्हें टोका कि इतनी कड़ी धूप है, फिर लालटेन किसलिए?
डायोजनीज ने उत्तर दिया- मैं कुछ खोज रहाहूं।
क्या खोज रहे हैं?
"इंसान....एक मनुष्य "
वह व्यक्ति हंसा और बोला- ये इतने मनुष्य आपको दिखाई नहीं दे रहे?
'दे तो रहे हैं। पर इनमें कोई डाक्टर है, कोई इंजीनियर, कोई वकील तो कोई कुछ और। इनके पास मानवीय चोला है, पर मानवीय आचरण नहीं।'
संत का कथन वर्तमान समाज की तस्वीर है।
मानवों का समाज आज मानवता से रिक्त है।
वैमनस्य, कपट, प्रपंच, चुगली, ईर्ष्या, लोभ रग-रग
में दौड़ रहे हैं। द्वेष स्वार्थपरता आज के संस्कार बन चुके हैं। ब्रह्म की साधना भूलकर मानव अपनी इच्छाओं की वेदी पर सब कुछ बलि किए जा रहा है।
अतः आज जरूरत है, फिर उसी वैदिक सूक्ति को गुंजायमान करने की- 'मनुर्भव-मनुर्भव।'
अर्थात, मनुष्य बनो, मनुष्य बनो। इसके लिए एक-एक व्यक्ति की हृदय भूमि पर मानवीय गुणों को रोपना जरूरी है। इन गुणों की फुलवारी जब प्रत्येक हृदय में खिलेगी, तभी हमारा समाज महक सकेगा
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
