सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी**6- कात्यायनी**
'चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।।'
माँ के इस रूप की पूजा छठे नवरात्रे में होती है। माँ कात्यायनी ऋषि कात्यायन की तपस्या के फलस्वरूप उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं थी। इसी रूप में माँ ने महिषासुर का मर्दन कर पृथ्वी वासियों को अभयदान दिया।
वास्तव में, असुर केवल उस समय ही नहीं, आज के परिवेश में भी है। क्योंकि असुर हमारी दुर्वृत्तियों को कहा गया है। महिषासुर का भाव 'महिष' माने भैंसा। जिसमें पशुता है, पाश्विकता है, वही महिषासुर है। जब जब हमारे भीतर हिंसा, निकृष्टता व पाप का बोलबाला होता है, तो माँ के प्रकटीकरण की परमावश्यकता होती है। माँ हम सभी के अंदर चेतना स्वरूप में विद्यमान हैं -
'या देवी सर्वभुतेषु चेत्नेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
ब्रह्मज्ञान द्वारा अपनी इस सुप्त चेतना को जागृत कर लेने से हम भी दुर्गुणों रूपी महिष का नाश कर सकते हैं। यही माँ कात्यायनी की प्रेरणा है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
