सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में बुद्ध के एक शिष्य रहते थे। वे अपने गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हुए साधना और ध्यान में मग्न रहते थे। उनकी उपस्थिति में गाँव के लोग शांति और दिव्यता का अनुभव करते थे। बुद्ध के शिष्य का दृष्टिकोण न केवल गहरे ध्यान में था, बल्कि वे हर व्यक्ति के भीतर छिपी हुई आत्मा और दिव्यता को पहचानने की क्षमता रखते थे। उनके लिए कोई भेदभाव नहीं था—न आयु का, न लिंग का, और न ही जाति का।
गाँव में एक दिन एक विचित्र घटना घटी। एक पाँच साल की छोटी सी लड़की, जो अपने माता-पिता से बिछड़ कर गाँव में आई थी, बुद्ध के शिष्य के पास पहुँची। वह डर के साथ उनके पास बैठी, क्योंकि उसने सुना था कि बुद्ध के शिष्य केवल वृद्धों से बात करते हैं और बच्चों से उन्हें कोई मतलब नहीं होता। लेकिन शिष्य ने उसे देखा और अपनी आँखों में अपार स्नेह और शांति का संदेश दिखाते हुए कहा, 'तुम मेरी मां हो, मेरी पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति।'
लड़की हैरान होकर बोली, 'आप मुझे मां क्यों कह रहे हैं, बाबा? मैं तो बहुत छोटी हूँ।'
बुद्ध के शिष्य मुस्कुराए और कहा, 'यह मेरा अधिकार है, क्योंकि एक बुद्ध का शिष्य न केवल आयु या शरीर के रूप को देखता है। हम सभी एक ही दिव्य आत्मा के रूप में हैं। तुम मेरी मां हो क्योंकि मैं तुम्हारी दिव्यता को देखता हूँ, जो वही ब्रह्म है, जो हर कण में व्याप्त है। तुममें वही दिव्य तत्व है जो मुझमें और सभी जीवों में है।'
लड़की की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसका दिल एक नई समझ से भर गया था। बुद्ध के शिष्य की बातें न केवल उसकी समझ को बदल दीं, बल्कि उसके पूरे अस्तित्व को एक दिव्य प्रकाश में रंग दीं।
कुछ समय बाद, गाँव में एक वृद्ध महिला आई। वह सौ साल की हो चुकी थी, और उसका शरीर अत्यधिक थक चुका था। वह एक दिन बुद्ध के शिष्य के पास आई और बोली, 'बाबा, मैं इतनी बूढ़ी हो चुकी हूँ कि मुझे लगता है अब इस दुनिया में मेरा कोई स्थान नहीं है।'
शिष्य ने उस वृद्ध महिला की ओर देखा और स्नेह से कहा, 'तुम मेरी बेटी हो। तुम्हारा अनुभव और तुम्हारा ज्ञान हमारे लिए अमूल्य है। तुम जैसे साधनशील, धैर्यवान और समर्पित व्यक्ति से हम सभी को सीखने की आवश्यकता है। तुमने जीवन के हर चरण में अपनी सच्चाई को जीते हुए आत्मा की पवित्रता को खोजा है।'
महिला स्तब्ध हो गई और उसकी आँखों में आभार की झलक दिखाई दी। वह समझ गई कि बुद्ध के शिष्य के लिए कोई उम्र या भेदभाव नहीं था; उनका दृष्टिकोण केवल आत्मा और सत्य को देखता था।
बुद्ध के शिष्य ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, 'यह मेरा अधिकार है कि मैं तुम्हें बेटी कह सकता हूँ, क्योंकि तुम सभी में वही दिव्यता है। वह दिव्य तत्व जो हर उम्र, हर रूप और हर स्त्री में है। जब तक तुम अपनी आत्मा से जुड़ी रहोगी, तुम कभी भी 'बूढ़ी' नहीं हो, न ही 'छोटी' हो। तुम्हारी आत्मा वही है जो सत्य है, और वह कभी नहीं बदलती।'
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बुद्ध के शिष्य के लिए न तो कोई आयु का भेद होता है, न ही लिंग का। वह केवल आत्मा और सत्य को देखता है, और हर व्यक्ति को उसी दिव्यता और प्रेम से पुकारता है। उनके दृष्टिकोण में हर कोई समान होता है, क्योंकि वे सभी एक दिव्य आत्मा का रूप हैं। और यही कारण है कि यह सन्यासी का अधिकार है कि वह एक दिन की बच्ची को भी मां कह सकता है और 100 वर्ष की महिला को भी बेटी कह सकता है, क्योंकि वे सभी उसी दिव्य तत्व से जुड़े हुए हैं।
बुद्ध के शिष्य का दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भीतर की दिव्यता को पहचानने और हर जीव में उस दिव्य तत्व को सम्मान देने की आवश्यकता है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
