सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीवास्तविक ज्ञान की प्राप्ति सद्गगुरू के पास से ही होती है। मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए, फिर भी भगवान श्रीकृष्ण ने मीरा को गुरु रविदासजी की शरण में जाने को कहा। मीरा ने जब श्री गुरु रविदासजी से दीक्षा ग्रहण की तब उसने कहा- मैने परमात्मा का प्रकाशरूप का दर्शन गुरु की कृपा से किए हैं, जिससे मैं माया और मोह दोनों के प्रभाव से छूट गई। गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं-
'सब कर परम प्रकाशक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई।।' रा च मा.
अर्थात, जिसके प्रकाश से सारा संसार प्रकाशित होता है वही अनादि ब्रह्म श्रीराम के रूप में अवतरित हुए हैं।
ईसा मसीह कहते हैं_ "आदि में शब्द था, वह शब्द प्रभु के साथ था और शब्द ही प्रभु था।
गुरु नानकदेवजी कहते हैं_ "उसी शब्द से धरती आकाश बने। सारी सृष्टि उसी शब्द से ही बनी है।
महापुरुषों का कथन है कि प्रभु की ज्योति के कारण ही जीव का जन्म होता है और शब्द से संसार की उत्पत्ति होती है। वह शब्द ही प्रभु है और उसका सनातन रूप प्रकाश है। अब विचारणीय है कि वह शब्द कौन सा है?
निराकार परमात्मा जब आकार ग्रहण करते हैं तब वह अपनी ही ज्योति रूप का दर्शन करवाते हैं।
गुरु की कृपा से वह शब्द मिलता है जो वेदों व ग्रंथों में भी नहीं है। जब सदगुरु की कृपा से जीव को परमात्मा की प्राप्ति होती है तो उस शब्द को इंसान अपने भीतर जान लेता है। तब ईसामसीह की बात समझ आती है__
'God created man in his own image.'
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
