सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीईश्वर दर्शन कब, कहां, कैसे होता है, इस बात का उत्तर हमारे ऋषियों ने बस कागजों पर ही नहीं, बल्कि पत्थरों तक पर उकेरा हुआ है। केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर में श्री रंगनाथ जी की भव्य मूर्ति है। इस मूर्ति में रंगनाथ भगवान, सद्गुरु भगवान को दर्शा रहे हैं। मूर्ति में उनकी नाभि से कमल निकल रहा है, जिसके ऊपर ब्रह्मा जी बैठे हैं। यह प्रतीक है इस बात का कि जब पूर्ण गुरु हमारे जीवन में आते हैं, तो सबसे पहले एक ब्रह्मा, एक सृजनकर्ता की भूमिका निभाते हैं। शिष्य को अध्यात्म जगत में जन्म देते हैं, जहां ईश्वर उसके सामने प्रकट हो जाता है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी बताते हैं- जब सद्गुरु की कृपा से शिष्य की हृदय भूमि पर भगवान् का प्रकटीकरण होता है तो वहां का मौसम अचानक से बदल जाता है। अज्ञानता की घोर काली रात को चीरकर चारों ओर प्रकाश फैल जाता है। संत दरिया जी कहते हैं- 'जगमग जोति झलाझल झलके, उर अंदर होए उजियारा।' एक दिव्य संगीत अंतस् में बजने लगता है। गुरु ज्ञान के बाद अनहद की धुन हमारे अंदर बादलों की तरह गरजने लगती है। हम सबकी श्वासों में ईश्वर का अव्यक्त आदिनाम है। लेकिन वो सुषुप्त रहता है। हमें अनुभव नहीं होता। पर पूर्ण गुरु से दीक्षा मिलते ही यह प्रभु का शाश्वत नाम भी प्रकट हो जाता है। और फिर अंत में अमृत। कबीर दास जी कहते हैं- 'उल्टे कमल, भीजे प्राणी।' ये जो हमारा गगन मंडल है, शिरो भाग, यहां सहस्त्र दल कमल है। यह कमल उलट जाता है और इसमें भरा अमृत झमाझम बरसने लगता है। शिष्य इस रस में भरपूर रूप से भींजता है।ऐसे होता है, गुरु कृपा से ईश्वर का हृदय में प्रकटीकरण!
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
