सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहमारे ऋषियों ने ध्यान को ईश्वर से जुड़ने का परम साधन माना है। एकाग्रचित्त ध्यान के माध्यम से की गई ईश्वर की उपासना से आत्मा को अलौकिक एवं दिव्य आनंद रूपी भोजन की प्राप्ति होती है। मनुष्य संसार में आकर इस भौतिक शरीर को प्राप्त करके केवल इसी की सजावट एवं संवर्धन में लगा रहता है और नाना प्रकार के व्यंजनों से शरीर को तृप्त करने में लगा रहता है। परंतु शरीर के भीतर विद्यमान आत्म तत्व के भोजन से वह सदैव अनभिज्ञ ही रहता है।
उपासना रूपी आध्यात्मिक संपत्ति से ही आत्मा के भोजन का प्रबंध होता है । तीनों लोक की संपत्ति में भी आत्मा के भोजन का प्रबंध करने का क्षमता नहीं है। ध्यान एवं उपासना के पथ पर अग्रसर होकर ही हम इस आत्मा को आनंद से परिपूर्ण तृप्ति प्रदान कर सकते हैं। ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से ईश्वर के आनंद की अनुभूति ही जीवात्मा का वास्तविक भोजन है।
इस दिव्य भोजन से आत्मा के अंदर आध्यात्मिक एवं साधना के पद पर ले जाने वाली विभूतियों का उदय होता है। शरीर के भोजन के प्रबंध के साथ-साथ हमें आत्मा का भोजन का भी प्रबंध करना चाहिए। बिना इस दिव्य भोजन के आत्मा निर्बल ज्ञानहीन होकर ईश्वर के सानिध्य से हमेशा वंचित रहती है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
